चाहत की इस दुनिया में, केवल व्यापार मिले मुझको
चाहा जिसे फूलों की तरह, उससे ही खार मिले मुझको
कैसे जिया और कैसे मरा हूँ, किसी को कोई गरज़ नहीं,
दिल में घुस के आघात करें, कुछ ऐसे यार मिले मुझको
अपना पराया करते करते, ये जीवन ही सारा गुज़र गया,
ना रही खनक अब रिश्तों में, झूठे इक़रार मिले मुझको
हम जिसके साथ हँसे खेले, जीवन भर जिसको दुलराया
उसने ही कपट की चाल चली, ऐसे मक्कार मिले मुझको
यहाँ कौन है अपना को कौन पराया, कैसे इन्हें पहचानूँ ‘मिश्र’
ना मिला सरल इंसान इधर, केवल बदकार मिले मुझको