TIRANGA

दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

मैं और मेरी खुशियां स्वर्णिम ,
गर्व फूली न समाती है ।
जन्म लिया भारत में मैंने ,
जिसकी नभ तक थाती है ।
मातृभूमि पर सब न्योछावर ,
जन-जन भारतवासी हैं ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

शीश हिमालय , चरणों सागर ,
पवित्र नदियों का जाल बुना ।
सोना रेत-माटी उगलाकर ,
स्वर्ग-धरती सुन्दर सपना ।
पूरब सात बहिनों की महिमा ,
इंद्रधनुष आभासी है ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

मानसून , मावठ दोनों है ,
काल-सुकाल समय के खेल ।
आदिवासी , आधुनिक सब जन ,
इसमें रहते हिलमिल मेल ।
अग्रज-अनुज पीढ़ी दर पीढ़ी ,
विचार अग्रसर राजी है ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

धर्म-एकता और विविधता ,
भारत के रग-रग में बसा ।
रंग-रंग के भांति फूलों से ,
यह अपना गुलशन है सजा ।
धर्म , रूप , रंग-जात से ऊपर,
ईश्वर एक विश्वासी है ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

योग , प्रणाम और सूर्यनमस्कार ,
प्रातः बेला के साज सजे ।
आरती ,अजान , प्रार्थना गूँजे ,
शबद वाणी प्रतियोम बजे ।
कण-कण में ईश्वर की महिमा ,
आध्यात्म लो में उजासी है ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

पुरा-पुरा युगों से चलकर ,
जीव सनातन आज महान ।
वेद और विज्ञान से गुम्फित ,
वसुकुटुंब सा सकल जहान।
देव-अतिथि सम-मन धारण ,
आदर पाते प्रवासी है ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं।

राम-युधिष्ठिर सत्य-हरिश्चंद्र ,
धर्मगाथाएं हमने सुनी ।
सीता ,सावित्री , नारी-नारायणी ,
नमन तुझे धन-धन जननी ।
सनातन संस्कृति हृदय संजोकर ,
पुण्य-प्रसून सुवासी है ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

कर्मज्ञान किसना(भगवान कृष्ण)से पाकर,
अर्जुन धर्म की राह चुनी ।
बलि-करण और ऋषि-दधीचि ,
दान कथाएं मिसाल बनी ।
जीवन बाल-गृहस्थ से सजकर ,
वानप्रस्थ , सन्यासी है ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

ध्यान , तपस्या , यज्ञ वेदी से ,
वृहत आर्यावर्त्त मान अपना ।
वेद , उपनिषद् , महाकाव्यों से ,
ज्ञानकोष समृद्ध बना ।
ऋषि , मुनि , ज्ञानी ,विद्वो की ,
वाणी बनी प्रभाषी है ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

चरक , सुश्रुत , आर्यभट्ट ने ,
तर्क विज्ञान में योग किया ।
लोपा ,मुद्रा ,गार्गी विदुषियां ,
नारी-विद्व प्रमाण दिया ।
भारत के गुणोज्ञान की वृद्धि ,
दिन-दिन बढ़ती प्रकाशी है ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

कला , ज्ञान , विज्ञान से सृजित ,
तन-मन में आध्यात्म रमा ।
आस्था-विज्ञान का मेल था ऐसा ,
‘अजस्र ‘ ज्ञान मिसाल बना ।
विश्वगुरू फिर से बन चमके,
परम बने , विश्वासी है ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

पृथ्वी , शिवा , प्रताप का शौर्य ,
अशोक , चन्द्रगुप्त नाम महान ।
पन्ना , मनु , सावित्री , अहिल्या ,
कित्तूर , सरोजिनी स्त्री अभिमान ।
मंगल , सुभाष , भगत , आजाद के ,
दर्शन को दुनियां प्यासी है ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

वीरों और शहीदों का बल ,
‘ जय-हिंद ‘ नारा अपना ।
त्यागी और बलिदानियों के दम,
स्वतंत्र राष्ट्र का सच सपना।
साहस अदम्य महापुरुषों का ,
बाजी जान लगा दी है ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

वंदे-मातरम और जन-गण-मन ,
ध्वज तिरंगा , अशोक स्तंभ ।
यह सब भारत प्राण तत्व है ,
जन-जन भरते इनका दंभ।
राष्ट्रपिता बापू ही के जो ,
सत्य-अहिंसा समाजी हैं ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

एक-अनेक की अखंड एकता ,
व्यक्ति-व्यक्ति सब एक समान ।
संविधान सबके ऊपर है ,
भारत की जनता गुणगान ।
फूल-फूल माला में गुंथे ,
संघ- एकता विश्वासी हैं ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

होली , दिवाली , ईद , दशहरा ,
क्रिसमस पोंगल पूरे साल ।
उत्सव त्योहार जयन्तियों में ,
बजते सबके दिल के तार ।
नवरात्रे रमजान बड़े दिनों ,
पर्युषण पर्व बैसाखी है ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

स्वतंत्रता ,गणतंत्र दिवस जब ,
देश ,देश-जन मनाते है ।
भूल सभी अपना व पराया ,
देशभक्ति जतलाते है ।
भारतमाता भी गर्व करे तब ,
लालों-प्रेम बरसाती है ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

विश्व-परिदृश सब देशों में ,
भारत आज विशिष्ट महान ।
धर्म-सहिष्णुता , मानवता और
लोकतंत्र की मिसाल जहान् ।
मंगल-चांद पे पहुंच बनाकर ,
विश्व-भविष्य का साँझी है ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

रक्त सींच कर ‘ हे ! भारत मां ‘,
शीशफूल श्रृंगार धरें ।
मान पे तेरे अर्पण सब कुछ ,
तन-मन-धन और प्राण करें ।
वैभवरूपी तेरा तिरंगा ,
‘अजस्र ‘ चढ़े आकांक्षी है ।
दर्द पराया जो अपनाए ,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’ ,
भारत जन अभिलाषी हैं ।

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