sushant and arijit

बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद कोई नई बात नहीं है। जब से फिल्में बननी शुरू हुई तो इस उद्योग में भी भाई-भतीजावाद ने धीरे-धीरे जड़े जमानी शुरू की आज तो यह वट वृक्षों का रूप ले चुका है। अब उदाहरण के रूप में देखें तो कपूर खानदान में पृथ्वी राजकपूर से शुरू होकर यह सिलसिला चौथी पीढ़ी तक चला गया है। इसी तरह महेश भट्ट का खानदान है, फिरोज खान का, राकेश रोशन, गायक मुकेश, अनिल कपूर, सलमान, फरहान अख्तर और करण जौहर जैसे लोगों के खानदान की दो-तीन पीढ़ियों से लोग इंडस्ट्री में काम करते आ रहे हैं। इन खानदानों के लोग वर्षों से एक दूसरे से अच्छे ताल्लुक रहने पर एक दूसरे को काम देने दिलाने में मदद करते रहते हैं। यह बात बहुत हद तक ठीक भी है ऐसा हम जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी देखते हैं। किसी परिवार का एक व्यक्ति किसी क्षेत्र में काम करता है और कामयाब होता है तो उसकी रिश्तेदारों तथा अगली पीढ़ी के लिए उस क्षेत्र में काम मिलने थोड़ा आसान हो जाता है। खैर इसमें कोई खास बुराई भी नहीं है।

भाई-भतीजावाद से खतरनाक है गैंगबाजी

भाई-भतीजावाद से ज्यादा खतरनाक बॉलीवुड में गैंगबाजी है। उसके कई रूप देखे जा सकते हैं। थोड़ा पीछे मुड़ कर देखें तो जिस समय बबंई के डॉन हाजी मस्तान का भी बॉलीवुड में काफी हस्तक्षेप था। रेहाना सुल्तान को फिल्में दिलाने में उसका खौफ काम करता था। इसी परंपरा को ज्यादा पुख्ता कर ज्यादा ओर्गनाइज्ड ढंग से माफिया डॉन दाऊद इब्राहिम और अबू सलेम ने चलाया था। मंदाकिनी और मोनिका बेदी को काम दिलाने के लिए ये फिल्म निर्माता व निर्देशक को आदेश देते थे। यहां तक की बॉलीवुड के बहुत सारे नामी सितारे दाऊद के दुबई के दरबार में हाजिरी लगाते थे। ये माफिया फिल्मों में पैसा लगाते हैं और अपने पसंदीदा लोगों को काम दिलाते रहे हैं।

वामपंथियों की गुटबाजी
साहित्य और सिनेमा में वामपंथियों की लॉबी बहुत मजबूत है और यह बेहद संगठित तरीके से काम करती है। यह गुटबाजी काफ़ी पुरानी और ताकतवर है। इसमें निर्माता, निर्देशक, एक्टर, लेखक और तकनीशियन सभी शामिल हैं। ये एक संगठित गिरोह की तरह काम करते हैं। अपनी ही विचारधारा के लोगों से काम लेना उन्हें काम दिलाना बेहद चालाकी से करते रहते हैं। इससे भी आगे बढ़कर फिल्मों की रीलीज डेट को लेकर बड़े निर्माता छोटे निर्माताओं को स्पेस ही नहीं देते। इसके बाद मल्टीप्लेक्स में स्क्रीन बुक करने के मामले में बड़ा भारी खेल होता है। छोटे बजट की फिल्मों को स्क्रीन ही नहीं मिल पाते हैं।

सलमान खान व अरिजीत सिंह का विवाद

साल 2014 में एक अवॉर्ड शो के दौरान आशि‍की 2 फिल्म के गाने तुम ही हो के लिए बेस्ट प्लेबैक सिंगर अवॉर्ड के तौर पर अरिजीत को चुना गया था। इस अवॉर्ड को देने के लिए मंच पर सलमान खान और रितेश देशमुख मौजूद थे जो कि शो को होस्ट भी कर रहे थे। अरिजीत ने सलमान से कहा कि आप लोगों ने सुला दिया यार, इस पर सलमान ने तुम ही हो गाने की धुन गाते हुए कहा कि अगर तुम ऐसे ही गाने गाओगे तो नींद ही आएगी।
अब चाहे सलमान ने अरिजीत की बात का जवाब मजाकिया अंदाज में दिया लेकिन शायद मन ही मन में एक्टर के दिल में अरिजीत का ये एटीट्यूड घर कर गया। इस वाकये के बाद फिल्म सुल्तान में जब सलमान द्वारा अरिजीत के गाने को हटाए जाने की खबरें चर्चा में रहीं तब अरिजीत ने फेसबुक पर एक लंबा पोस्ट लिखकर खुद को भाईजान का फैन बताते हुए उनसे माफी मांगनी चाही लेकिल सलमान का इस पर कोई जवाब नहीं अाया। इस घटना के बाद से उस समय टॉप पर चल रहे अरिजीत सिंह को अचानक गाने मिलने करीब करीब बंद हो गए। इस बात की पूरी आशंका है कि सलमान ने अरिजीत को सबक सिखाने के लिए अपने करीबियों को गाने नहीं देने के लिए कहा हो या फ़िर सलमान से बिगाड़ ना करने के डर से बिना कहे ही लोगों ने अरिजीत को काम देना बंद कर दिया हो।

सबसे खतरनाक है अवार्ड गैंग

भाई-भतीजावाद तो चलो आदमी बर्दाश्त भी कर ले लेकिन बॉलीवुड के जीतने भी अवार्ड हैं तथा उससे भी आगे जाकर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में भी जबरदस्त लॉबिंग चलती है। इसी का नतीजा है इसी वामपंथी लॉबी से जुड़े लोग ही अधिकतर पुरस्कार देते दिलाते रहते हैं। कई बार तो इनका पक्षपात साफ नजर भी आ जाती है जब इनसे बेहतर काम करने वाले और किसी गुटबाजी का हिस्सा नहीं बनने वाले बेहतरीन काम करने वाले लोगों के काम को रिकोगिनेशन नहीं मिल पाता है।
कंगना रनौत ने भी इस मामले में एक वीडियो जारी कर इस तरह के गैंगबाजी करने का आरोप कुछ लोगों पर लगाया है।
सुशांत सिंह राजपूत एक अच्छा अभिनेता था उसने यह बात अपनी फिल्मों काई पो चे, धौनी – ए अनटोल्ड स्टोरी तथा छिछोरे में साबित भी की है। कद काठी और चेहरे मोहरे के मामले में तो वो वाकई इतना हैंडशम और स्मार्ट था कि वो निश्चित ही कई हीरो को अनजाने में ही इन्फियरिटी कॉम्प्लेक्स में डाल देता होगा। इसलिए कुछ लोग उसको किनारे करने के लिए हाथ धोकर पीछे पड़े हों ऐसी भी आशंका सही हो सकती है। मीटू कैंपेन में भी सुशांत के पीछे कुछ लोग पड़े ही थे।

प्यार मोहब्बत का मामला भी हो सकता है। या फ़िर आमदनी कम और खर्चा रुपये का भी चांस है। पुलिस को इन सारे पहलुओं को ध्यान में रखते हुए जांच करनी चाहिए।
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