“एक सामान्य स्त्री जो मर्यादा, सीमाओं, इज्जत और कर्तव्यों के ऐसे चक्रव्यूह में होती है जिसे पार करना असंभव सा प्रतीत होता है, फिर भी उसकी आकांक्षाएं उसे उस चक्रव्यूह के पार सोचने के लिए मजबूर करती है और यह… Read More
श्रेणी
कहानी : धक्का
“और इस तरह आज फिर से एक मजदूर ने बिना अपने घर की दहलीज छूए रास्ते में ही दम तोड़ दिया । इन मजदूरों की मौत का जिम्मेदार कौन? ये कोरोना वायरस, ये गरीबी, या फिर हमारी ये असंवेदनशील सरकार… Read More
कविता : बुधुआ
बुधुआ ने सुना कि रेपो रेट में हो गई है कटौती अब कम हो जाएगी ईएमआई गांव के मास्टर साहब से पूछेगा वह उसका मायने उसे ग्रोथ रेट भी जानना है और यह भी जानना है कि एम एस एम… Read More
कविता : जिंदगी
अलग नहीं हो तुम कभी मुझे से न मैं हूँ कभी अलग तुम से पारस्परिक सहयोग से चलती है जिंदगी अंतिम सांस तक अकेला कोई जी नहीं सकता सह अस्तित्व है प्रबल शक्ति। भेद – विभेद की रचना में अपने… Read More
कविता : अब तो संभल
अब तो संभल जा इन्सान सचेत कर रहा है भगवान देख ले धरती पे ये अजाब गुनाहों से तौबा कर इन्सान डर भी लगता है कोरोना से अपनी फितरत को तो पहचान मन में खोट फिर बुरा सोच क्यूं खुदा… Read More
कविता : कितने मतलबी हो तुम शहर
अपने कमरे की दरारों को तस्वीरों से ढांककर मैंने बनाए तुम्हारे लिए महल चिकनी दीवारें और चमकते फर्श तुम्हारी कारों के लिए पथरीले रास्तों को बदल दिया समतल सड़कों में पार्क, माल, क्या नहीं बनाए तुम्हारे खुश रहने तुम्हे तुम… Read More
ग़ज़ल : ख़ामोश इश्क़
तलवार से नहीं किसी भी वार से नहीं. ख़ामोश इश्क़ मिटता है हथियार से नहीं. मैंने ये तो नहीं कहा तुम इश्क़ मत करो. गर तुम करो इश्क़ तो अधिकार से नहीं. देखूं मैं ख़्वाब में तुम्हें मतलब तो… Read More