हमारे विश्व गुरु भारत में हर दूसरा मनुष्य ज्ञानी है। उस दूसरे यानी ज्ञानी के सामने समस्या यह रहती है कि उसके हिसाब से पहले वाला कुछ समझना ही नहीं चाहता। इसलिए किसी से भी कुछ कहने के साथ ही हर व्यक्ति यह भी कहता चलता है कि, ‘नहीं समझे।’ दूसरे अर्थ में पहला व्यक्ति भी ज्ञानी ही है। इसीलिए वह दूसरे वाले की बात समझना ही नहीं चाहता। इन्हीं विद्वानों के लिए ऋग्वेद का ऋषि कहता है-

“आ चिकितान सुक्रतू देवौ मर्त रिशादसा।

वरुणाय ऋतपेशसे दधीत प्रयसे महे॥ ऋग्वेद ५-६६-१॥

हे ज्ञानी मनुष्य! आप श्रेष्ठ विद्वानों का संग करो जो तुम्हें तुम्हारे शत्रुओं (काम, क्रोध, लोभ आदि) से दूर करेंगे। तुम्हें उत्तम कर्म करने के लिए प्रवृत्त करेंगे। (ऋग्वेद ५-६६-१) ।”

कलयुग में ऋग्वेद की ऋचाओं का सही इस्तेमाल हो रहा है। ज्ञानियों के धर्म को देखकर लगता है कि यह कर्म और धर्म के प्रयोग का युग है। इसमें जो भी कर्म हो रहे हैं सब अच्छे ही हैं, विशेषकर वे जो धर्म प्रधान कर्म हैं। किसी के हाथ पैर काट लिए जाते हैं क्योंकि वह अज्ञानी था और श्रेष्ठ विद्वानों का संग नहीं कर पाया था। अत: मूर्खतावश पवित्र धर्मग्रंथ को छूकर अपवित्र कर दिया था। इसी कारण उन ज्ञानियों के अनुसार ऐसे अज्ञानियों और मूर्खों को धरती पर रहने का अधिकार नहीं है। अगर उसको ऐसी ही बेअदबी की खुजली थी तो किसी बच्ची के साथ बलात्कार या अपनी माँ-बाप लातों घूसों से मार सकता था। उनकी बर्बर हत्या कर सकता था। यह क्या कि धार्मिक पुस्तक के साथ बेअदबी की।उसके पावन पन्ने कितना रोए होंगे। उसके अक्षर-अक्षर में बसी मानवता कितना तड़पी होगी। सबद की संवेदना से खेलने वाले ऐसे पापी बचे रह जाते तो गुरुओं की सारी सीख निरर्थक हो जाती।
इसके लिए उस पापी के वध का यह कर्म, धर्म का कर्म है। इस कर्म के जो पुण्यात्मा हैं, ज्ञानी हैं, सच्चे संत हैं, मैं उनके नाम नहीं ले रहा क्योंकि मैं जल्दी मोक्ष नहीं चाहता। अगर नाम लिया तो वे मेरे साथ भी वही कर्म करेंगे जो उस अज्ञानी के साथ किया। जैसे उसके हाथ-पैर काट कर उसे सद्ज्ञान दिया मुझे भी दे सकते हैं। जैसे उसमें बसे काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसे विकार दूर किए मेरे भी किए जा सकते हैं। जैसे उसे मोक्ष मिला मुझे भी मिल सकता है। अब मुझे विश्वास हुआ गज, ग्राह और गणिका ज़रूर तरे होंगे।
मोक्ष के लिए तप आवश्यक है। यदि किसी में तप का सामर्थ्य नहीं है तो उसे ताप से समर्थ बनाया जाता है। इसी ताप से पाप का नाश होता है। इसी तप के ताप से ज्ञान मिलता है और ज्ञान से मोक्ष। लेकिन ज्ञान से ज़्यादा परोपकार का काम है किसी को सीधे मोक्ष दे देना। इस तरह का मोक्ष ईसामसीह, सुकरात, दाराशिकोह और बुल्लेशाह आदि को पहले भी दिया जा चुका है। आई एस आई एस और तालिबान ने तो इसमें महारत ही हासिल कर रखी है।
हज़ारों मील दूर बैठकर भी बापू जैसे कमज़ोर सत्याग्रही चौरी-चौरा कांड की आँच नहीं सह पाए थे। पर, सच्चे सत्याग्रही तो वे हैं जिनको विचलित किए बिना सत्य, धर्म और न्याय की रक्षा के लिए उनके आस-पास भी मोक्ष के ऐसे प्रयोग घटित हो सकते हैं। सही अर्थों में वे ही सच्चे सत्याग्रही हैं। इसीलिए गणिका और ग्राह की तरह जब घोर कलिकाल में भी किसी पापी दलित को मोक्ष मिलता है तो इससे वे तनिक भी विचलित नहीं होते।
धर्म के पथ पर चलने वाला ज्ञानी मनुष्य वही है जो अधम से अधम को भी मोक्ष देने में विश्वास करता है और श्रेष्ठ विद्वान वे हैं जो ऐसों को लक्ष्मी का हार पहनाते हैं। इसी कारण मोक्षदान के तुरंत बाद धर्म-पथ के ये ज्ञान पिपासु पथिक उन विद्वानों के पास सीधे पहुँच जाते हैं।
धर्म का माहात्म्य यह होता है कि उसके पूजा स्थल या धर्मग्रंथ को छू लेने भर से मोक्ष मिल जाता है। मेरा मित्र गिरगिट अपने धर्म का अपमान नहीं सह सकता। उसके धार्मिक विश्वास पर ज़रा सा भी तर्क उसको असहज कर देता है। ज़रा-ज़रा सी बात पर आग बबूला हो जाता है। वह अपने को धर्म का बड़का ज्ञानी मानता है पर दूसरे धर्म की निंदा में उसे बड़ा मज़ा आता है। उसका मानना है कि मैं बहुत कायर और नालायक हूँ और मेरे जैसे कायर व नालायक कभी भी उसके जैसे सच्चे धार्मिक नहीं हो सकते। उसका कारण यह है कि उसके सामने यदि कोई उसके धर्म की निंदा करे तो वह निंदक का सर कलम कर सकता है और मैं हूँ कि ऐसे निंदक के सामने आगबबूला होने की बजाय दाँत निपोर देता हूँ।मैं उसका दोस्त हूँ फिर भी उसके सामने उसके धर्म की निंदा करने से उतना ही डरता हूँ जितना कि छुट्टा शेर से। उसका गिरगिट नाम मैंने ही रखा है। लेकिन उसके सामने यह नाम कभी नहीं ले सकता। अगर कभी गलती से भी ले लिया तो वही हाल हो सकता है जो उसने कभी गिरगिट का किया था। उसने दीवाल पर चढ़ते हुए गिरगिट को पत्थर मार-मार के मार डाला था। मैंने पूछा तुमने ऐसा क्यों किया तो वह बोला तुमको क्या पता कि इसने क्या किया था। मैंने पूछा कि क्या गुनाह किया था तो वह बोला कि इसने मेरे धर्मगुरु के दुश्मन को उनका पता बता दिया था। मुझसे रहा न गया तो फिर बोल पड़ा,’वह गिरगिट दूसरा था और न जाने कब और कहाँ मर-खप गया होगा। इसपर उसने जो पत्थर उठाया था अगर दे मारता तो गिरगिट से कम बुरा हाल मेरा न होता। अभी बंग्लादेश में फेसबुक या व्हाट्स ऐप पर एक अज्ञानी युवक ने जिस समुदाय के ईश की निंदा की थी उस समुदाय सैकड़ों लोग उसे ढूंढ़ने लगे। वह नहीं मिला उसके ईश्वर के घर सहित उसके घर को जला दिया। साथ में उसकी जाति और धर्म वालों के घर जला दिए। दो लोगों की हत्या भी कर दी ताकि उनका ईश्वर यह न कह सके कि उसके अनुयायी निकम्मे हैं। मैं मानता हूँ कि ये ही नहीं अन्य सभी धर्मों के लोग भी समझदार हैं, जो धर्म के मामले में बिल्कुल देर नहीं करते। सबसे पहले तो व्हाट्स ऐप पर ही विरोध दर्ज कर देते हैं। यह एक एंटी वैचारिक मिसाइल की तरह काम करते हैं। ज्ञानी हैं, विद्वान हैं। करुणा और संवेदना के सागर हैं। इसीलिए मैं धार्मिक लोगों से बराबर दूरी बना के रखता हूँ कि इन सब के सामने मैं हल्का पड़ जाता हूँ और कहीं इनकी करुणा की लहरों में बह न जाऊँ।

सुना है कि इस पुण्य और तप के कर्म से इंद्र का सिंहासन हिल गया था। इंद्र और उनकी पुलिस से जब इन पुण्यात्माओं का पुण्य नहीं सहा गया तो वे इन्हें पकड़ने निकले पर सामने होते हुए भी उनके हाथ आगे नहीं बढ़े तब वे पुण्यात्मा पापी पुलिस के पास खुद ही पहुँच गए।

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