कोरोना की दूसरी लहर भारत को बेहद खौफ़नाक मंज़र दिखा रही है। मौत की बढ़ती दर ने लोगों को भय की गिरफ्त में लिया है। संक्रमण का आंकड़ा भी बढ़ रहा है। भारत को कई मित्र राष्ट्रों ने मदद दी है। देश में संक्रण को बढ़ते मामलों के साथ ही आवश्यक दवा तथा आक्सीजन, आक्सीजन के उपकरण तथा ऑक्सीमीटर समेत और कई जरूरी सामान लोग ज्यादा उँचे दामों पर बेच कर मुनाफा कमा रहे हैं। कुछ लोग जमाखोरी करके मुनाफा भी कमा रहे हैं। इस सबके बीच बहुत से लोग खुद की जान को जोखिम में डालकर मदद कर रहे हैं, बहुत से लोग जीवन भर कि जमा पूंजी को कोरोना काल में जनकल्याण के लिए खर्च कर रहे हैं। इस सबके बीच बहुत से लोग मुफ्त में भोजन, ऑक्सीजन, व दवा आदि का जरूरतमंदों के लिए इंतजाम कर रहे हैं। यह समाज जितना भ्रष्ट होगा, समाज कि इकाईयां भी उतनी ही भ्रष्ट होंगी फिर चाहे वह नागरिक, पुलिस, पत्रकार, डॉक्टर, नौकरशाह आदि क्यों न हों।
हम उस आदर्श समाज का हिस्सा है जहां ज्यादा शिक्षित नहीं मिलाकर कुछ लिख पढ़ लेने वाला व्यक्ति अशिक्षित व्यक्ति का पहचान पत्र, राशन कार्ड आदि का सिर्फ फॉर्म भरने के लिए पैसे लेकर फार्म भरते हैं। दरअसल कुछ लोगों कि मानसिकता खराब परवरिश अथवा संगत कि वजह से विक्षिप्त हो जाती है, यह सब लम्बे समय से हमारे आस पास घटित हो रहा है। साईबर कैफे में ऑनलाईन फार्म से टिकट तक के लिए लोग सेवा शुल्क के नाम पर सैकड़ों से हजारों रूपए वसूल लेते हैं। इन लोगों के जाल में फंसने वालों में ज्यादातर व्यक्ति जिनके पास संधान का अभाव है, तकनीक की पहूँच से दूर कामगार आदि।
एक जमाने में लोग बेसिक फोन में ही पिन व पासवर्ड आदि के लिए भी पचास से दो सौ रूपए तक लिया करते थे। इस सभ्य समाज में कुछ लोग शिक्षा फिर चाहे वह औपचारिक अथवा अनौपचारिक हो, ज्ञान का प्रयोग मात्र मुनाफे के लिए करते हैं।
किसान से बड़े साहूकार मद्दे में फसल में अनाज खरीदकर सीजन के बाद उँचे दाम पर बेचते हैं। सरकार ने कानून बनाए पर कितनी सख्ती से इसे लागू किया गया है यह तो हम आप जानते ही हैं।
हम उस देश के निवासी हैं जहां सरकारी सेवाओं को जनसम्पर्क के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। भला हो सरकार का ज्यादातर चीजें ऑनलाईन करके इस जनसम्पर्क व शक्ति प्रदर्शन के अभियान को कमजोर किया है। आज भी लोगों का ऑफलाईन सुविधा दरवाजे तक न पहुंच पाने का बड़ा कारण हैं कि यह किसी जन प्रतिनिधि के कार्यालय अथवा आवास पर ही लाईन लगानी पड़ती है, कई सरकारी योजनाओं के लिए।
इस तरह के समाज में हम यह सुनकर जाने क्यों अचंभित हैं कि कुछ हजार का ऑक्सीजन सिलेंडर लोग कालाबाजारी करके लाखों में बेंच रहे हैं। आप यह कह सकते हैं कि बाजार मांग और आपूर्ति के सिद्धांत पर चलता है, परन्तु इस बात से हम कतई भी इंकार नहीं कर सकते हैं कि लोभ व लालच के गणित के आगे सारे सिद्धांत बेकार हैं। सरकार ने बेहद सख्ती अख्तियार करके इस कालाबाजारी पर नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया है।
किराना की दुकान पर ज्यादातर समान के मूल्य तय दर से अधिक में खाद्य वस्तुओं को बेच रहे हैं।
देश पर आए इस संकट के समय में जहां विश्व के बहुत से देश हिन्दुस्तान कि मदद कर रहे हैं साथ ही पाकिस्तान ने भी हरसमभव मदद की बात कि है। इस दौर में भी कुछ लोग लोगों कि मजबूरी का फायदा उठाने से नहीं चूक रहे हैं।
एक कहावत है “ठगी का कारोबार लालचियों के गाँव में चलता है” शायद इसे बदलने का वक्त आ गया है कि मजबूरी का फायदा उठाकर भी हम किसी को ठग सके हैं, बस शर्त इतनी है कि इंसानियत मर चुकी हो।
इसी सभ्य समाज में अंग तस्करी के भी मामले आते हैं, इनमें ईश्वर का प्रतिरूप डॉक्टर का मुख्य किरदार होता है। ज्यादा पढ़े लिखे व सक्षम अंग तस्करी कर रहे हैं। जिसमें जितना सामर्थ्य है वह उतने वेग से इस समाज का नुकसान कर रहा है।
व्यक्ति अपने आस-पास और माहौल से सीखता है उसने जो जीवन भर देखा है। हमारे देश में ज्यादातर जन प्रतिनिधि आपको नियमों कि अवहेलना करते मिलेंगें। कार में सीट बेल्ट न लगाना, नो पार्किंग में गाड़ी खड़ी करना, सीट बेल्ट का न लागाना, गाड़ियों के काफिलों के साथ चलना, आए दिन अपशब्दों का प्रयोग आदि।यह सब अबोध बालकों को इस तरह का आचरण करने कि प्रेरणा देता और फिर इस कुत्सित मानसिकता के लोग समाज में गंदगी फैलाते हैं।
हमें खुद व आस पास के समाज का अवलोकन करना चाहिए। हम किस तरह के लोगों को समाज में बढ़ावा दे रहे हैं। इस संकट की घड़ी में सरकारों को एम्बुलेंस के किराए, दवा व रोजमर्रा के सामान के लिए रेट निर्धारित करने पड़ रहे हैं। यह बेहद चिन्ता का विषय है क्योंकि हम कोरोना की वैक्सीन तो बना चुके हैं पर इस लालच व ठगी के खिलाफ कैसे निपटेंगे शायद घसके लिए हमें और गहनता से विचार करने की आवश्यकता है।
मुझे इसे पढ़ना बहुत अच्छा लगा