‘लक बाय चांस’ के प्रोड्यूसर किरदार रोमी रोली का किरदार एक जगह खुद से बतियाता इंडस्ट्री के बदलते चलन और परंपराओं के टूटने पर रोता है। वह स्टार पुत्रों को अपनी फ़िल्म में लेना चाहता हैं पर वह सब उनसे झूठ बोल-बोल कन्नी काटते हैं। ऋषि कपूर का यह किरदार इसलिए देखना जरूरी हैं क्योंकि उनकी सिनेयात्रा की सेकेंड इनिंग लगभग इसी फ़िल्म की बुनियाद पर खड़ी है और इस किरदार और अभिनय का उरूज़ ‘दो दूनी चार’ के दुग्गल सर की सादगी और ईमानदारी में दिखती है, मेरी पसंदीदा ऋषि कपूर। किरदार बहुत हैं पर ऋषि कपूर की यादों को चुनकर साथ ले जाना हो तो मैं यह दो किरदार अपने साथ ले जाऊंगा। आज यह बेमिसाल अभिनेता इरफान खान के पीछे-पीछे उस जहाँ में चला गया, जहाँ कोई रवि लौट कर अपना कर्ज़ नहीं चुकाता। इतनी जल्दी दो मध्यांतर होते हैं क्या! ऋषि अब नहीं आएंगे। हिंदी सिनेमा में कपूर्स की एक गौरवशाली परंपरा का सबसे सफल अभिनेता अब नहीं रहा।
मैंने पर्दे के बाहर ऋषि कपूर को ओसियन सिनेफैन में ‘लव आजकल’ की स्क्रीनिंग के बाद बतकही में इम्तियाज़ के साथ देखा था। मुझे वह बतकही पूरी याद नहीं पर दर्शकों में मध्यवय की औरतों, नौजवान लड़कियों के लगातार सवालों में से कुछ याद रह गए। एक महिला ने कहा- ‘चिंटू जी! (मुझे ठीक से याद है यही कहा था उनसे) मेरे पास सवाल नहीं है, पर एक बात बतानी है कि फिल्मों में आपको देखकर मेरी माँ कहा करती थी, बेटा हो तो ऐसा हो। आदर्श बेटा।’ दूसरी महिला ने पूछा था – आप अपने स्वेटर कहाँ से खरीदते या बनवाते हैं ? प्लीज बता दीजिए क्योंकि आपकी फिल्मों में आप जिस तरह के स्वेटर पहनते हैं, वह इधर मिलते ही नहीं’। – कुछ हल्के फुल्के सवालों में नौजवान लड़कियों ने रणवीर को लेकर भी कुछ पूछा था। और चिंटू जी ने मीठी झिड़की देते हुए कहा था – ‘अरे यार यहाँ मेरी फैन फॉलोइंग बैठी है और तुम सब रणवीर की बात कर रहे हो।’- ये अभिनेता ऋषि कपूर की लोकप्रियता का आलम था। लोकप्रिय होने वाले अभिनेताओं की लंबी फेहरिस्त है ओर जिस तरह हमारी दादियों, मम्मियों के पास वाला घर घुसरापन ऋषि कपूर का रहा है, वह शायद किसी और अभिनेता को नसीब नहीं रहा। 04 सितंबर 1952 को जन्में ऋषि कपूर उर्फ चिंटू जी अब हमारे बीच नहीं रहें। पर पर्दे पर कुछ खास किरदार सिनेमाई इतिहास के जरूरी पन्नों की तरह साथ रहेंगे। पहली क़िस्त की ‘मेरा नाम जोकर’, ‘बॉबी’, ‘अमर अकबर एंथोनी’, ‘कर्ज़’, ‘प्रेमरोग’, ‘एक चादर मैली सी’, ‘हिना’, ‘चाँदनी’, ‘नगीना’, ‘दीवाना’, ‘दामिनी’ तो दूसरी क़िस्त में ‘ लक बाय चांस’, ‘चिन्टूजी’, ‘डी डे’, ‘अग्निपथ’ और हालिया खेप में ‘कपूर एंड संस’, ‘102नॉट आउट’, ‘दो दूनी चार’, ‘मुल्क’, ‘मंटो’ जैसी फिल्मों से हम ऋषि कपूर के अभिनय क्षमता को जान सकते हैं।
• शोमैन पापा के लिए लकी बेटा
राज कपूर का मेगा ऑटोबियोग्राफिकल ड्रीम प्रोजेक्ट ‘मेरा नाम जोकर’ बड़ी फ्लॉप सिद्ध हुआ था। तुरंत बाद एक और बेटे रणधीर कपूर निर्देशित ‘कल आज, कल’ भी मुँह के बल गिर गयी थी। हालांकि ऋषि कपूर ने मेरा नाम जोकर में युवा जोकर राजू के किरदार के लिए पहले ही राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार जीत लिया था, पर फ़िल्म जो बाद में कल्ट हुई, वह तब आर.के. परिवार को सड़क पर ला देने वाली सिद्ध हो गयी थी। राजकपूर के इस फ़िल्म के औंधे मुँह गिरने की कई वजहें ट्रेड एनालिस्टों ने कही, पर प्रह्लाद अग्रवाल ने जो लिखा वह राज कपूर के इस ड्रीम के गिरने की एक अद्भुत व्याख्या है। उन्होंने लिखा है ‘जोकर में लोग जोकर का तमाशा देखने आये थे पर उन्होंने जब जोकर की आंखों के आँसू देखे तो उनसे पचा नहीं’- राज कपूर को चुका हुआ निर्देशक कहने वालों और आर्थिक फ्रंट पर टूटे राज को अपने बेटे को लेकर “बॉबी” में उम्मीद जगी थी। फ़िल्म समीक्षक जयप्रकाश चौकसे की माने तो “बॉबी” आर्चीज कॉमिक्स के एक किरदार के एक संवाद की उपज थी कि ‘ यह भी कोई उम्र है प्यार करने की”। और रिलीज होने, बिकने, हिट होने की सौ कहानियों के बीच ऋषि कपूर पापा के लकी चार्म बनकर उभरे। बॉबी ने आर. के. बैनर के दिन बदल दिए। वह इस बीस-इक्कीस के युवा ऋषि कपूर का उदय था, जब खन्ना का जादू अब ढलने की ओर चला था और एंग्री यंग मैन तेजी से उभरा था। ऋषि कपूर को लोगों ने हाथों हाथ लिया। टीनएज प्यार की यह कथा इतनी हिट हुई कि कहते हैं गाँव-कस्बों में बॉबी बसें चलने लागिब थीं, जो लोगों को शहर बॉबी फ़िल्म दिखाने के लेकर जाने-आने का काम करती थीं। यह ऋषि कपूर की हिंदी सिनेमा में ओपनिंग प्लाट थी, जिसने सबसे पहले अपने परिवार का खोया गौरव लौटा दिया था।
• वह सब ‘खुल्लम खुल्ला’ बोल गया
ऋषि कपूर के अभिनय प्रतिभा पर कोई सवाल नहीं उठा सकता पर जब उन्होंने अपनी ज़िन्दगी के बेहतरीन साठ बसन्त देख लिए तो अपनी ही एक हिट फ़िल्म के गीत ‘खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे’ से टाइटल लेकर मीना अय्यर के साथ अपने ज़िन्दगी के पन्नों को स्याही दी। मीडिया से ट्वीटर सनसनी का खिताब लिए ऋषि कपूर ने इस किताब से भी सनसनी फैला दी। उन्होंने लिखा –
# मेरे पिता राजकपूर 28 साल के थे और पहले ही हिंदी सिनेमा के शोमैन का खिताब पा चुके थे। उस वक्त वह प्यार में थे। दुर्भाग्य से मेरी माँ के अलावा किसी और से। उनकी गर्लफ्रेंड उनकी कुछ हिट ‘आग’, ‘बरसात’ और ‘आवारा’ में उनकी हीरोइन भी थी।
# मुझे याद है जब पापा वैजयंती माला के साथ इंवॉल्व थे तो मैं मम्मी के साथ मरीन ड्राइव के नटराज होटल में शिफ्ट हो गया था। होटल से हम लोग 2 महीने के लिए चित्रकूट अपार्टमेंट में चले गए जो पापा ने मॉम और हमारे लिए खरीदा था।
# हां! मैंने बेस्ट एक्टर दवा बेस्ट एक्टर अवॉर्ड को खरीदा है और इसलिए अमिताभ बच्चन नाराज हैं। मैंने बॉबी के लिए बेस्ट एक्टर अवार्ड 30000 रुपये में खरीदा था। इसलिए अमिताभ उनसे नाराज रहे क्योंकि उन्हें लगा कि वे जंजीर के लिए जीतेंगे।
सिर्फ इतना ही नहीं, अभिनेता ऋषि कपूर ने जब लिखा तो यह भी दर्ज किया कि उनके पिता को शराब, सिनेमा और leading ladies से प्यार था। और यह भी कि उन्हें लगता था कि फ़िल्म लेखक अमिताभ को लेकर पक्षपाती हैं। यह सीधे सीधे सलीम-जावेद की ओर इशारा था। यह युवा ऋषि के मनोभाव थे, जो तबके सुपर स्टार अमिताभ और धर्मेंद्र, जितेंद्र के समय और बाद में मिथुन, संजय दत्त, सन्नी के उभार में भी अपनी अलग पहचान सिद्ध करते और अपना अलग दर्शक वर्ग बनाते हुए मजबूती से अपनी जगह बना रहे थे। यह वैसा ही था जैसे उनके चचाजान शम्मी कपूर ने दिलीप-राज-देवानंद वाली तिकड़ी के सामने अपनी अलग विशिष्ट जगह बनाई थी। कपूर्स की यह खासियत रणवीर में भी दिखती है जहाँ वह खान त्रयी के सामने अपने अभिनय क्षमता और लोकप्रियता का डंका पिट चुके हैं।
खैर किस्सा ऋषि कपूर । आप किसी के जीवन के खुली किताब होने की बात करते हैं ! ऋषि कपूर खुद में बिना शोर किए खुली किताब थे। उन्होंने जो कहा ‘खुल्लम खुल्ला, अनसेंसर्ड’ कहा। आज के समय में ऐसी साफगोई कईयों को बेवकूफी लग सकती है।
• हाँ! मैं अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम से मिला
ऋषि कपूर ने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम से अपनी बात और लगभग चार घंटे चली बात को खुलकर बताया। वह साल 1988 का था जब वह आशा भोंसले और आरडी बर्मन के प्रोग्राम में शामिल होने दुबई गए थे। साथ में उनके एक दोस्त बिट्टू आंनद भी थे। ऋषि कपूर ने लिखा है कि ‘एयरपोर्ट पर दाऊद के एक गुर्गे ने उन्हें फोन देते हुए कहा, दाऊद साब आपसे बात करेंगे।’ ऋषि लिखते हैं – फोन पर दाऊद ने मेरा स्वागत किया और कहा कि किसी भी चीज की जरूरत हो तो मुझे बता दें। उसने मुझे अपने घर भी बुलाया। मैं इस सब से भौचक्का था। ‘ हालांकि उन्होंने दाऊद का न्योता स्वीकार कर लिया और इसमें उनको कोई बुराई नहीं लगी।
ऋषि बताते हैं, ‘दाऊद सफेद रंग की शानदार इटैलियन ड्रेस में आया और उसने गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया। उनकी यह मुलाकात करीब 4 घंटे तक चली। उसने बहुत सी चीजों के बारे में बात की। दाऊद ने मुझे बताया कि मैं उसे फिल्म ‘तवायफ’ में बहुत पसंद आया, क्योंकि उसमें मेरे किरदार का नाम दाऊद था।’
बाद में 1993 के बम ब्लास्ट्स के बाद दाऊद इब्राहिम देश के लिए विशेष वांछित भगौड़ा घोषित हो गया था पर ऋषि कपूर की मुलाकात इसके पाँच बरस पहले की रही। यद्यपि ऋषि कपूर ने कहा है कि उन्हें तब दाऊद से बात करके ऐसा नहीं लगा कि वह कम से कम महाराष्ट्र के लोगों का बुरा चाहता है। बाद के दिनों में ऋषि कपूर ने इकबाल सेठ की 2013 में आई “डी डे” में दाऊद इब्राहिम का किरदार निभाया तो ऋषि कपूर ने अपने अभिनय, देहभाषा सबसे फिर चौंका दिया। मुझे अब लगता है कि क्या ऋषि कपूर दाऊद के किरदार के सच के इतना नजदीक इसलिए जा पाए क्योंकि उन्होंने उस रहस्मय डॉन के साथ चार घंटे बिताए थे? खैर!
• ट्विटर सेंसेशन या साफगोई की आदत
ऋषि कपूर को सूचना समाज में एक अलग अवतार में हमने देखा। माध्यमों की बाढ़ में हमने ऋषि कपूर का अलग चेहरा देखा। कभी प्यार कभी चौंकाने वाला पर इस चिन्टूजी से नफरत कभी न हो सकी। फिलहाल, इस नए बदलाव के दो बड़े दृश्य हमारे सामने रहे हैं। पहला अपने कटु ट्वीटस से सनसनी पैदा करने वाले, दूसरा एकाएक अग्निपथ में रउफ लाला का खलनायक वाला किरदार निभाकर एकाएक अपने चाहने वालों को हतप्रभ कर देने वाले अभिनेता के रूप में। इस रोल के लिए उन्हें आईफा का बेस्ट निगेटिव रोल का अवार्ड भी मिला पर लोगों को वह ऋषि भी याद था जिसने यशराज की ‘डर’ निगेटिव रोल होने की वजह से। छोड़ी थी और एक दफे शाहरुख की तारीफ करते हुए कहा भी था कि ‘डर के लिए शाहरुख को मेरा शुक्रगुजार होना चाहिए।’
ऋषि कपूर ने ट्विटर पर वैसे तो काफी खुराफाती कहे जाने भर के ट्वीट किये पर जिन ट्वीट्स ने उनको सबसे अधिक ट्रोलर्स दिए और जो सबसे अधिक चर्चा में रहे, उनमें कुछ खास हैं –
# I am angry . Do you equate food with religion? I am a beef eating Hindu.
# Does that mean I am less God fearing then a then non eater?
# By the way I love my pork chops too like a lot of my like muslim friends who have a like wise thinking.
# ये पण्डित, मौलवी सब छोड़ो। करो दिल की बात। मन की बात। Ban on food? Unheard of idiots!!! Politics!!
सच कबूली करूँ तो ऋषि कपूर के इन बयानों में मुझे अपने बी.ए. के दिनों की याद आई थी, जब हिंदी ऑनर्स के लिए अंग्रेजी की सब्सिडरी क्लास लेने के लिए रामजस कॉलेज के दिनों की कुछ सबसे बेहतर शिक्षकों में से एक डॉ. बेनुलाल मैम आई थी। शायद 2002 का समय था और पाठ शायद खुशवंत सिंह का था। जिसमें इस तरह के फ़ूड हैबिट का जिक्र था जहाँ नायक अपने चहड़ वैसे रोस्टेड बीफ खाने में खर्च करता है। मैंने स्कूल से लंबे गैप के बाद कॉलेज में कदम रखे थे। जीवन की स्कूलिंग अलग किस्म की थी। मैंने इस बात पर आपत्ति की। मुझे याद है बेनु लाल मैम ने क्लास वहीं रोकी इत्मीनान से मेरी बात तर्क सब सुना फिर उस पूरे घंटे में उन्होंने जितने सहजता से, तर्क से एक सांस्कृतिक पाठ और विभिन्न संस्कृतियों के फ़ूड हैबिट का सबक सिखाया, वह मुझे अपनी समझ और शिक्षकों के लिए अतिरिक्त सम्मान का मानी हुआ। ऋषि कपूर मेयो कॉलेज, अजमेर से पढ़े थे। निश्चित है कि उनको भी बेहतर शिक्षको का साथ मिला, जिन्होंने कहा, मन को तो सच लगता है उसके साथ रहो। हिंदी सिनेमाजगत के परिवारों में जहाँ एक अलग किस्म का रहस्य लोक बना रहता है, वहाँ इस इंडस्ट्री के सबसे सफल, सबसे लंबी विरासत वाले परिवार के बेहद सफल अदाकार ने जब ज़िन्दगी ले पन्ने खोले तो उसमें भी वही ईमानदारी दिखी जो उन्होंने अपने किरदारों में डाली थी। विदा चिन्टूजी, आप क्या गए गोया अहमद फ़राज़ का शेर हो गए –
“तेरे बदन में धड़कने लगा हूं दिल की तरह/यह और बात है कि अब भी तुझे सुनाई ना दूँ।”
जब तक रजत पट है तब तक आप और आपकी आवाज़ हमारे जीवन के स्याह अंधेरों में रोशनी और उदास चेहरों पर मुस्कान देती रहेगी।
“तेरे बदन में धड़कने लगा हूं दिल की तरह/यह और बात है कि अब भी तुझे सुनाई ना दूँ।”
जब तक रजत पट है तब तक आप और आपकी आवाज़ हमारे जीवन के स्याह अंधेरों में रोशनी और उदास चेहरों पर मुस्कान देती रहेगी।
जाओ सदाबहार चार्मिंग, चॉकलेटी प्यारे अभिनेता…हमें मालूम है तुमने भी खूब प्यार किया और हमने भी “ॐ शांति ॐ शांति शांति ॐ” एक कपूर ने तुम्हें जीवन का ककहरा सिखाते कह दिया था मैं ना रहूंगी तुम न रहोगे, फिर भी रहेंगी कहानियाँ…. कहानी रह गयी है और मनबढूँ राजकुमार प्यार की वह हल्की होती आवाज़ भी जो पर्दे के मध्य से शुरू होती है और हल्की होती धीरे से जाकर कोने में सिमटी खत्म होती है ….चाँदनी ओ मेरी चाँदनी…अलविदा प्यारे चाँद…।