मंदिर मस्जिद और,  
गुरुद्वारा में गये।
श्रद्धा से सिर को,
झुकाया वहां पर।
और कि प्रार्थना,
सामने उनके बैठकर।
हे प्रभु सुन लो,
अरज मेरी तुम।
और दे दो वरदान,
अमन चैन से रहने का।
ताकि खुश रह सके,
अब देशवासी जन।।
कितनी बेचैनी मची है,
लोगो के परिवार में।
डर का माहौल है,
अपने ही समाज में।
और सुने पड़े है,
शहर के गली मोहल्ले।
मिलने जुलने का समय,
अब निकला जा रहा है।
दूरभाष से ही हालचाल,
अब पूछे जा रहे है।
और भारतीय संस्कृति का,
अब अंत सा हो रहा है।।
सारे संबंध अब, 
छूटे जा रहे है।
काम काज का भी,
अब अंत सा हो रहा है।
आर्थिक तंगी भी अब,
सामने आन पड़ी है।
घर के कर्ताधर्ता सब,
हाथ पे हाथ धरे है।
घर की सब गृहिणी,
अब परेशान हो रही है।
कैसे मिलेगा हम सबको,
इस महामारी से छुटकारा।।
संजय करता है प्रार्थना, 
उस पालन हार से।
कुछ तो करो समाधान,
जिससे मिले शांति विश्व को।
इसलिए अपने चरणों में,
दे दो हमे जगह तुम।।

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