सतना की माटी ने सतना ही नहीं बल्कि देश विदेश में अपने सपूतों को उजागर किया। इस माटी में कई बीज अंकुरित होकर अपने काम के द्वारा इस जग में नाम कर गए, उसी में एक जाना पहचाना नाम था ठाकुर खिलवानी, एक छोटी कद काँठी और सहज व्यक्तित्व का धनी अभिनेता और रंगकर्मी जो शारीरिक विकलांगता को अपनी मजबूरी नहीं बनने दिया, जिसने एक पैर से विकलांग होने के बावजूद अपने हुनर से इस सतना की माटी, सतना के रंग कर्म, सतना के सिनेमा, और सतना के रंग मंच को आक्सीजन देने का काम करता रहा, वो ऐसा व्यक्तित्व था जो निर्गुट रहा, जो किसी वामपंथ और दक्षिण पंथ के संकीर्ण दायरे में नहीं बंधा, जिसने कभी भी यह प्रतीक्षा नहीं कि सतना में यदि कोई साहित्य, कला रंगमंच का कार्यक्रम हुआ हो और आमंत्रण मिले, उनका हमेशा यह मानना था कि सतना में कोई भी कार्यक्रम हो वो उसके घर का कार्यक्रम है, अपने घर में कोई एक सदस्य दूसरे को आमंत्रित नहीं करता है।
लगभग चार फीट लंबाई वाले ठाकुर खिलवानी, हिंदी, अंग्रेजी, और सिंधी भाषा के जानकार रहे। जीवन ज्योति कालोनी के निवासी ठाकुर साईं ने कभी भी किसी युवा रचनाकार को निराश नहीं किया, अपने साथ की बहुत सी पत्र पत्रिकाएँ, कुछ पुस्तकें और अनवरत सहयोग हमेंशा प्रदान करते रहे,। छोटी छोटी छणिकाओं से अपनी बात कहने वाले ठाकुर साईं हर संग्रह में अपना स्थान सुनिश्चित करते थे। प्रारंभ में इप्टा, फिर कखग, फिर बघेली थियेटर ग्रुप, और अत में सभी रंगमंचीय कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी करते रहे। सतना के आशोक मिश्र, दिलीप मिश्र, और शशिधर मिश्र, सुनील विश्वकर्मा लाली, और पृथ्वी आयलानी के साथ रहते हुए उन्होने सतना में नब्बे के दशक में बनी फिल्म छोले भटूरे में एक महत्वपूर्ण किरदार अदा किया, इसी के साथ सिनेमा और रंगमंच के कितने हे शिविर में सक्रिय भागीदारी की।  दो हजार दस के दशक में उनकी एक जानी पहचानी फिल्म छपरा टाकीज का प्रीमियर रिलीज हुई, हालाँकि वो इतने बड़े अभिनेता नहीं बन पाये जितना उनके अंदर हुनर था किंतु उनकी प्रतिभा के सभी साथी कायल थे। वो मेरे से उम्र में बहुत बड़े थे, किंतु डा, राजन चौरसिया के  प्रेस के सामने उनका प्रतिष्ठान था और वहाँ की भेट वार्ता की ऐसी पहचान बनी की वर्तमान समय तक वो सभी कार्यक्रमों में शामिल होकर सतना को गौरवान्वित करते रहे। विंन्ध्य व्यापार मेंले में सतना की कलावीथिका सभागार में संग्रहणकर्ताओं के साथ उनका समागम हमेशा रहा उनके पास बहुत से पुराने डाकटिकट, माचिस के डिब्बे और अन्य पुराने जमाने की चीजें संग्रहित हुआ करती थी।

ठाकुर खिलवानी के अंदर छपास रोग, या प्रसार रोग नहीं था, उनके अंदर नियत समय में अपनी प्रस्तुति देने का जज्बा था, मोबाइल के जमाने में मोबाइल की बजाय कागज में बड़े अक्षरों में लिखकर वो कविता पढ़ते थे।
ठाकुर साईं, विकलांगता और छोटे कद को एक किनारे करके अपने व्यक्तित्व के दिये से इस जग को रोशन करते रहे, विगत विंध्य चेंबर आफ कामर्स के तुलसी जयंती, कखग की नाम्बर सिंह की श्रद्धांजलि सभा में उनकी मुलाकात हुई थी, पाठक मंच और साहित्यिक आयोजनों में तो वो नियमित साथी हुए।परसों विगत चौदह सितंबर के दिन जब पूरा देश हिंदी दिवस में हिंदी के विकास के लिए अलग अलग विमर्श में लगा हुआ था, तब हिंदी और सिंधी भाषा की परचम को लहराता हुआ, रंगमंच और सिनेमा के संवाद बोलते हुए हमेशा के लिए मौन हो गया। दोपहर दो बजे ही उनके मोबाइल नंबर से एक शोकसंदेश मेरे मोबाइल पर प्रदर्शित हुआ जिसमें लिखा था कि ठाकुर खिलवानी का आकस्मिक निधन। पहले तो कुछ पल को यकीन नहीं हुआ किंतु नियति के इस विधान के सामने किसी का बल नहीं चलता, आज हमारे बीच में उनके किये गए अभिनयों के वीडियो फिल्में रंगमंचीय नाटकों की झलकियाँ हैं, उनके द्वारा संग्रहित किये गए विभिन्न अनमोल धरोहरें हैं, उनके द्वारा सिंधी और हिंदी भाषा के लिए किए गए योगदान साक्षी हैं, उनकी स्मृति को भविष्य में याद दिलाने वाली ये सभी यादें हमें रह रह कर याद दिलाएगी की सतना में छोटे कद का एक बडा अभिनेता अपना काम करके अचानक स्टेज से चला गया। जिसने अपने हुनर और सादगी से सबका दिल जीत लिया। यह सच है आने वाले दिनों में हो सकता है कि सिनेमा और रंगमंच से जुड़ी हुई संस्थाएँ अपनी गैरतमंदी को दिखाते हुए श्रद्धांजलि सभाओं का आयोजन करें, या फिर उनके लिए उनके व्यक्तित्व के लिए कसीदे पढ़े, उन्हें पढ़ना भी चाहिए किंतु एक अनुज कलमकार की तरफ से मै इस संस्मरणात्मकर आलेख में अपनी मनोभावों को लिखकर अपना साहित्यिक संबंध निर्वहन करने की छोटी सी कोशिश कर रहा हूँ। सिंधी समाज, फिलोटैलिकर सोशाइटी, रंगमंच, सिनेमा जगत के लिए ठाकुर खिलवानी कभी ना भुलाया जाने वाला व्यक्तित्व है, जिन्हें चाहकर भी नहीं भूला जा सकता है।

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One thought on “ठाकुर खिलवानी : छोटे कदकाँठी का बड़ा अभिनेता”

  1. स्वर्गीय ठाकुर खिलवानी जी को मेरा शत शत नमन. उनके आकस्मिक निधन से स्तब्ध हूँ

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