हिंदी भाषा का 1000 वर्ष का हमारा ये गौरव शाली ईतिहास हमें यह बताता हैं की मेरी जड़े इतनी कमजोर नही हैं की जो भी आएगा मुझे उखाड़ कर फेक सकेगा | बल्कि मुझ मे इतना प्रेम, स्नेह भरा हैं कि जो भी मेरी तरफ आता हैं वह मुझ मे ही समा जाता है | मै उन साम्यवादियों की तरह नही हू,कि अपना वजूद दिखाने के लिए अन्य विचार धारा को तालाब मे रहने वाली छोटी मछलियों की तरह खा जाऊ | मेरा ईतिहास जानने वाले मुझे बातये की मै वही हू जिसे समाप्त करने के लिए मुगल, अरबी, फ़्रांसिसी, तुर्की, के अलवा अंग्रेज जैसे महान पश्चिमी सभ्यताए मेरी जड़ो को उखाड़ फेकने का न जाने कितनी कुटिल चाले नही चली किंतु मुझे नाकाम करने मे,  खुद ही नाकाम नही रहे बल्कि मेरी ही शाखाओ से स्वमेव ही फलने – फूलने लगे | मुझ पर ऐसा भी नही था कि मै उन्हें अपने आप से बहार निकलने मे सामर्थ नही थी, सामर्थ मुझ पर पूरा था किन्तु मै उनकी तरह निष्ठुर नही थी | इसलिए मैने उन्हें अपने हृदय मे स्थान दिया | इतना ही नही की केवल मै आतताइयों की तरह जबरन उन पर कुछ भी थोप दिया हो मैने उनके वजूद की भी रक्षा की उनकी शाखाओ को भी मैने अपने जड़ो से पानी दिया है, उन्हें सूखने से बचाया है | ताकि उन्हें यह पता चल सके की केवल शक्ति के बल पर ही नही किसी को जीता जा सकता है बल्की स्नेह, और  प्रेम के भाव से हराया जा सकता है | इस प्रकार हिंदी स्नेह, दया, और प्रेम, का पोषक है |आज के परिप्रेक्ष मे हिंदी के विषय मे केवल इतना ही कहना चाहता हू कि भले ही आप अपने बच्चो को अंग्रेजी माध्यम मे पढ़ाये किन्तु संस्कार हिंदी के दें |

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