रामलीला का आयोजन चल रहा था। दृश्य था “सीता – हरण”। पंडाल भरा हुआ था। आयोजकों ने महिलाओं और पुरुषों के लिए बैठने की व्यवस्था, सुविधा और सुरक्षा की दृष्टि से अलग-अलग की थी। सभी लोग लीला का आनंद ले रहे थे। रावण का अट्टहास और भाव-भंगिमा सबको मंत्रमुग्ध कर रही थी, कि अचानक, महिलाओं के पंडाल में अफरा-तफरी मच गई। लोग ‘आग-आग’ चिल्लाते हुए बिना एक-दूसरे की परवाह किए, इधर-उधर भागने लगे। शॉर्ट-सर्किट की वज़ह से लाइट भी चली गई थी। अँधेरे में जो कुछ भी दिखाई पड़ रहा था, वो बस, मंच की लाइट और आग की लपटों से ही ज्ञात होता था। इसी भागा-दौड़ी में एक बूढ़ी महिला अपना संतुलन खो बैठी, और भीड़ के पैरों तले आ गई। वो चिल्लाती रही और चिल्लाते-चिल्लाते अचेत ही हो गई, पर किसी ने भी उसका आर्तनाद नहीं सुना। आग बढ़ते-बढ़ते बुजुर्ग महिला की ओर फैलती जा रही थी। आयोजक हैरान-परेशान, फ़ोन पर फ़ोन खड़काए जा रहे थे। मंच से धैर्य बनाए रखने की अपील जारी थी कि तभी, रावण बना दिवाकर मंच से नीचे कूदा, और दौड़कर आग में उतर गया, और उस बूढ़ी महिला को, जो थोड़ी झुलस भी चुकी थी… बाहों में उठाकर मंच पर ले आया। महिला को पानी के छींटे मारे l चेतना नहीं लौटते देख बिना समय गंँवाए तुरंत अपनी वैगनआर कार में, सीता बनी लड़की की सहायता से, उसे पास के अस्पताल में भर्ती कराया और तब तक वहीं रहा जब तक उस बुजुर्ग महिला के परिजन नहीं आ गए।
अगले दिन अख़बार में ख़बर थी – “रावण में भी राम।”