गुरुदत्त हिंदी सिनेमा के सबसे संवेदनशील निर्देशकों में शामिल हैं। गुरुदत्त बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे फिल्म निर्माण के अधिकतर क्षेत्रों में अपना दखल रखते थे। मुझे उनकी टक्कर का एक ही शख्स लगता है वो हैं राजकपूर। खैर कई वजहों से वे राजकपूर से भी ज्यादा पसंद हैं।
#गुरुदत्त का जन्म 9 जुलाई 1925 को बैंगलोर में हुआ था। उनका वास्तविक नाम #वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था। गुरु दत्त तीन भाइयों और एक बहन के साथ बंगाल में आकर बस गए। बंगाल में रहने के बाद उन्होंने बंगाली नाम गुरु दत्त अपना लिया। वे कोलकाता में अपने मामा बालकृष्ण बेनेगल के साथ काफ़ी समय तक रहे थे। बालकृष्ण बेनेगल मशहूर फि़ल्म निर्देशक #श्याम बेनेगल के चाचा थे, जो कि एक पेंटर थे और फि़ल्मों के पोस्टर्स डिजाइन किया करते थे।
उदय शंकर की नृत्य अकादमी में ट्रेनिंग ली
कोलकाता में शिक्षा प्राप्त करने के बाद गुरु दत्त ने अल्मोड़ा स्थित #उदय शंकर की नृत्य अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त किया। उसके बाद कलकत्ता में टेलीफ़ोन ऑपरेटर का काम करने लगे।
ऐसे शुरू हुआ फिल्मी सफर
वह पुणे (भूतपूर्व पूना) चले गए और प्रभात स्टूडियो से जुड़ गए। वहौं उन्होंने पहले अभिनेता और फिर नृत्य-निर्देशक के रूप में काम किया।
देवानंद के नवकेतन फि़ल्म्स के लिए उन्होंने सबसे पहले बाज़ी (1951) फिल्म निर्देशित की थी। इसके बाद दूसरी सफल फि़ल्म जाल (1952) बनाई। इसमें भी देवानंद और गीता बाली शामिल थे। इसके बाद गुरु दत्त ने बाज़ (1953) फि़ल्म के निर्माण के लिए खुद की प्रोडक्शन कंपनी शुरू की।
प्यासा से शुरू हुआ बेहतरीन फिल्मों का दौर
गुरुदत्त संवेदनशीलता से गढ़ी गई उदास व चिंतन भरी फि़ल्मों के लिए ही विशेष रूप से जाने जाते हैं। उनकी सबसे बेहतरीन फिल्मों में सर्वोपरि #प्यासा (1957) थी। गुरुदत्त ने देवानंद की फिल्म सीआइडी में वहीदा रहमान को छोटा सा रोल दिया था। इसकी सफलता के बाद फि़ल्म प्यासा में वहीदा रहमान को लीड हिरोइन का रोल मिला। इस फिल्म में गुरुदत्त और वहीदा रहमान दोनों ने बहुत की बेहतरीन अभिनय किया है। गुरुदत्त ने संवाद से अधिक अपने चेहरे के हावभाव से ही प्रेम व विरह की बेबसी के भावों को शिद्दत से बयां किया। यही वह फि़ल्म थी जिसके बाद वहीदा रहमान और गुरु दत्त की प्रेम कहानी शुरू हुई।
प्यासा फिल्म को अमेरिका की प्रसिद्ध टाईम्स मैगजीन ने सौ सबसे प्रसिद्ध फिल्मों की लिस्ट में शामिल किया था। इसे विश्व की सर्वकालिक रोमांटिक फिल्मों में से एक बताया था।
पहली सिनेमास्कोप फिल्म कागज के फूल
गुरुदत्त फिल्मों में नई तकनीक के इस्तेमाल को काफी तवज्जो देते थे। देश की पहली सिनेमा स्कोप फिल्म #कागज़़ के फूल बनाने का श्रेय उन्हें दिया जाता है। गुरु दत्त और वहीदा रहमान अभिनीत ‘कागज के फूलÓ की असफल प्रेम कथा इन दोनों के ही जीवन पर आधारित थी। वहीदा रहमान के साथ गुरुदत्त ने फि़ल्म ‘चौदहवीं का चांद में भी काम किया था जो काफी सफल हुई।
लाजवाब साहब बीबी और गुलाम
#साहब, बीबी और ग़ुलाम का निर्देशन गुरुदत्त के पटकथा लेखक अबरार अल्वी ने किया था लेकिन यह फिल्म गुरु दत्त और #मीनाकुमारी के लाजवाब अभिनय के लिए याद की जाती है। इसमें रहमान भी प्रमुख भूमिका में थे।
नई तकनीक के प्रयोग में आगे
गुरु दत्त ने अपने फि़ल्मी कैरियर में कई नए तकनीकी प्रयोग भी किए जैसे, फि़ल्म बाज़ी में दो नए प्रयोग किए। 100 एमएम के लेंस का क्लोज़ अप के लिए इस्तेमाल पहली बार किया- कऱीब 14 बार। तब से उस स्टाईल का नाम ही गुरु दत्त शॉट पड़ गया। किसी भी फि़ल्म में पहली बार गानों का उपयोग कहानी को आगे बढ़ाने के लिए किया गया।
निजी जीवन में मची उथलपुथल
काम में अत्यधिक व्यस्त रहने के कारण गुरु दत्त दांपत्य जीवन के लिए बहुत अधिक वक्त नहीं दे पाते थे, जिसके कारण उनके वैवाहिक जीवन में तूफ़ान खड़ा हो गया। गुरु दत्त पत्नी #गीता दत्त और #वहीदा रहमान दोनों से बेहद प्रेम करते थे। वे दोनों को अपनी जि़न्दगी का हिस्सा बनाना चाहते थे लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
गुरुदत्त जरूरत से ज्यादा शराब पीने लगे थे। इसकी वजह से उनका लीवर खराब हो गया था। जरूरत से ज्यादा संवेदनशीलता और शराबखोरी की वजह से वे जीवन में आए इस मोड़ पर खुद को संभाल नहीं पाए और सिर्फ 39 बरस की उम्र में 10 अक्टूबर 1964 को ख़ुदकुशी कर ली। इससे पहले भी तीन बार वे आत्महत्या का प्रयास कर चुके थे। इस तरह से एक बेहद प्रतिभाशाली फिल्म सितारा असमय ही आसमान से टूट कर गिर गया। आखिरकार अपनी फि़ल्मों की ही तरह उनका भी दु:खद अंत हुआ।
#guruDatt