rishta

समाज में रिश्तों के बनते बिगड़ते आयाम और उसमे बिभिन्न मानवीय सम्बदनाओं को आज के स्पष्ट और भौतिकतवादी युग
में उतार चढ़ाव कि मार्मिकता और कठोरता के सापेक्ष एक प्रयोगिग सत्य सन्देश यह कहानी देती है जहा व्यक्ति का स्वार्थ
उसे कठोर और भाउक बना देता है।साथ ही साथ कहानीकार ने भाई बहन के रिश्तों को भारतीय समाज के परिवारों कि
खूबसूरती और भारतीय समाज में रिश्तों के पवित्र बंधन को बखूबी दर्शाया है ।अर्पित और अर्पित भाई बहनो का वर्णन
कहानीकार ने उसी तरह किया है जैसे कि भारतीय समाज में पचपन में साथ साथ भाई बहन पड़ते लिखते लड़ते झगड़ते
बड़े होते है लगता है कभी अलग हो ही नहीं सकते कच्चे धागे का यह बंधन भारत और भारतीयता से पूर्ण समाज में रिश्तों
और परिवारों का मतलब विश्व को बताता है ।अर्पित और अर्पिता भी साथ साथ लड़ते झगड़ते बड़े होते है अर्पित सी ए
करता है और अर्पिता एम ए बी एड दोनों का विबाह हो जाता है दोनों अपनी अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त हो जाते है ।
बचपन के साथ साथ बिताये समय यादों में ही रह जाते है ।दोनों भाई बहन अपने अपने घर गृहस्थी में रम जाते है दोनों
एक एक पुत्र है अर्पित का पुत्र आई आई टी से बी टेक करता है और अर्पिता का बेटा बी ई अर्पित का बेटा विदेश में अच्छे
पैकेज़ पर विदेश चला जाता है और अर्पित का बेटा सरकारी इंजीनियर अर्पित और अर्पिता के जन्म माँ बाप का स्वर्गवास
हो जाता है यहाँ तक यह कहानी साधारण भारतीय समाज के परिवारों कि परम्परा ही है मगर एकएक अर्पिता के बेटे द्वारा
अपने नाना कि संपत्ति के लिये मांग करने के लिये माँ अर्पिता और पिता से जिद्द करना भारत में नए समाज के उदय के
नवजवान की आवाज कि आहट है साथ ही साथ भाई बहन के रिश्तों के मध्य तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप है जिसे भाई बहन जैसे
संवेदनशील रिश्ते का इल्म नहीं है  इसी हस्तक्षेप का आग्रह भाई बहन के रिश्ते पर भरी पड जाता है और अर्पिता का
प्रस्ताव जब भाई अर्पित के पास आता है तब उसका रक्तचाप रक्त के रिश्ते के दबाव में बढ़ जाता है जो कुछ दिन अस्पताल
में चिकित्सा के उपरांत ठीक हो जाता है मगर बहन अर्पिता को बहुत ग्लानि होती है और वह लकवाग्रस्त हो जाती है कुछ
दिन कि सेवा से ऊब कर उसके बेटे बहु उसे अकेला छोड चले जाते है ।अर्पित भाई आता है ::मैं तुम्हे पापा का माकन गिफ्ट
करने आया हूँ लेकिन अभी मैं तुम्हे अपने साथ ले जाने आया हूँ किसी अच्छे डॉक्टर से तुम्हसरा इलाज जब तक तुम ठीक न
हो जाओ पहली बार तुमने सेवा का अवसर दिया है जबकि तुमने जाने कितनी बार बेहतरीन सेवाएं दी है::कहानी वास्तव
में रिश्तों में खटास में सयंम और संतुलन को आमन्त्रित करती सार्थक प्रेरणा देती है।

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