man alone and thinking

सही और ग़लत के बीच भी बहुत कुछ ऐसा होता जिससे परिस्थितियों का निर्माण होता है । सही कोई क्यो है ? जितना महत्वपूर्ण यह प्रश्न है उतना ही महत्वपूर्ण इसका जवाब भी तलाशना होता है कि कोई गलत क्यों है ? हम दो शब्दों में ही किसी के व्यक्तित्व को बांधना चाहते हैं जो कि उसके व्यक्तित्व के साथ अन्याय है । हमें अगर निरपेक्ष होकर सही और गलत को तलाशना है तो इन दोनों के बीच भी बहुत संभावनाएं बनेंगी । यह प्रकृति का नियम है कि न तो कोई पूर्ण है न ही अपूर्ण । यह हमारे सम्बन्धों और संवेदनशीलता की एक मांग है और उसी के आधार पर हम क्षणिक निर्णय ले लेते है सही और ग़लत का ।

ठीक उसी तरह सफलता और असफलता की भी कसौटी होती है। कोई सफल है और कोई असफल । अगर हमें पूरी सत्यता की परख करनी है तो इन दोनों के मध्य की स्थितियों को देखना होगा । इन दोनों के बीच ही हमें वास्तविक संभावना मिलेगी जो बताएगी कि क्या सत्य है। खैर महत्वपूर्ण पक्ष अक्सर अनछुआ रह जाता है और काल के गाल में इस तरह समा जाता है कि इतिहास भी उसे दर्ज नहीं कर पाता । संभावना तलाशना ही सत्य को निरपेक्ष होकर तलाशना है । सत्य तक पहुंचना है तो मध्य की स्थितियों को तलाशें शायद कुछ अवशेष मिल जाएं तो सत्य तक हम पहुंच जाए ।

विडम्बना भी तो यही है कि मनुष्य की नियति बस सत्य और असत्य तक ही सीमित होना चाहती । अर्थात सही और गलत बस दो परिभाषाएं ही गढ़ी जा सकी हैं । इसके अलावा और कुछ नहीं । सत्य से हम अक्सर दूर होते हैं क्योंकि मध्य की स्थितियों को नहीं जानना चाहते । वही तो मनुष्य का निर्माण करती हैं, उसके व्यक्तित्व का निर्माण करती है । जो इन दोनों के मध्य से संभावना की तलाश करता है उसके लिए सही और ग़लत, सफल और असफल , सत्य और असत्य का भेद मिट जाता है । किन्तु हमें सत्य और असत्य के मध्य जाना होगा । उसका निरपेक्ष विश्लेषण करना होगा तभी हम सत्य को जान सकेंगे ।

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One thought on “सही और ग़लत के बीच”

  1. मुझे यकीन है अब अच्छे लेख पढ़ने को मिलेंगे

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