घूँट ज़हर के अब पी बहुत लिये है,
ज़रा एक घूँट अमृत का भी पी लेने दे,
“ए जिंदगी” कुछ पल तो मुझको अपनी मर्जी से जी लेने दे।
कुछ समाज की बंदिशों ने रोका,
कुछ अपनों ने है मुझको टोका,
इस समाज की बंदिशों से ज़रा मुझको आजाद तो हो लेने दे,
“ए जिंदगी” कुछ पल तो मुझको अपनी मर्जी से जी लेने दे।
एक मौका तो दे मुझको ‘ए ज़िंदगी’
जो फट लगे है इस दिल में,
ज़रा उनको तो सीं लेने दे,
“ए जिंदगी” कुछ पल तो मुझको अपनी मर्जी से जी लेने दे।
हो करके इस कला में “प्रवीन”
मैं अपनी कविताएँ सबको सुनाऊँ,
ज़रा एक बार मेरा वो वक़्त तो आ लेने दे,
“ए ज़िंदगी” कुछ पल तो मुझको अपनी मर्जी से जी लेने दे।।
शुक्रिया साहित्य सिनेमा सेतु
Nice