poem unke liye mera man kuy udas hai

रौनक भरी उनकी इस महफ़िल में,
उनके लिए मेरा मन क्यों उदास है?
खड़ें हैं सामने उनके सभी भीड़ में,
नहीं वो क्यों मेरे पास हैं?

चारों ओर शोर ठहाका नजारों में,
पर होंठ क्यों मेरे चुपचाप हैं?
सभी व्यस्त इधर उधर की बातों में,
हम बतियाते क्यों अपने आप हैं?

मुंह फेर कोई बात ना करे हमसे,
हमें फिर क्यों उनका इंतजार है?
हर कोई दोस्तों से घिरा, मगर
अकलेपन में हमें क्यों उनकी तलाश है?

न बात करते हों मुझसे वो अब,
फिर मुझे क्यों उनसे ये आस है?
उनके बेरुखे व्यवहार में किस्सा कोई जरूर है,
मगर कसूर क्या मेरा, मसरूफियत क्यों मुझसे है?

बेशक रूठकर मुझसे दूर वो चलें जायें,
दूर होकर भी मुझे क्यों उनसे हीं फरियाद है?
उनके लिए मेरा मन क्यों उदास है?

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