witing girl

इस दफ़ा मैं हूँ तुम्हारे बिन,
ये सुबह यू ही बीत गई तुम्हारे बिन।
कहीं से कोई परेशान करने नही आया,
फिर जाने क्यों खुश नही मैं, तुम्हारे बिन।

आज कमबख्त दिन नही कट रहा तुम्हारे बिन,
शाम शायद बेरुखी सी होगी तुम्हारे बिन।
आज डर नही है समाज के बंधनों का,
फिर जाने क्यों सुकून नही मिलता तुम्हारे बिन।।

जिंदगी में रुसवाईयाँ है आज कल तुम्हारे बिन,
हर जगह, सहर में कमी है तुम्हारे बिन
दिन आज का यूँ तो मदमस्त सा रहा,
फिर जाने क्यों एक कमी है तुम्हारे बिन।।

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One thought on “कविता : तुम्हारे बिन”

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