kavi-sudhir-shrivastava

बरखा की बूँदों के आगमन के साथ ही जन्मदिन का आना
झरते हुए फूलों का डालियों से टूटकर राह में बिछा जाना
हवा के खुशबूदार झोंके से भरती है तन में सिहरन
नहायी प्रकृति के केश से झरती बूंदों की छन छन
कर रही है जिसका इंतजार? वह है…बस एक ही, बस एक ही

मत फूँककर बुझाना मोमबत्ती ब्रह्मांडीय ऊर्जा से संपर्क करना
सौंदर्य और शुभता का प्रतीक एक दिया छोटा सा जलाना
रखकर हाथ शिखा पर मस्तक पर आज तिलक करवाना
सूक्ष्म स्वर से सौंप देना चरण स्पर्श से भाव समिधा
यज्ञ जो कर रहा है कौन है? वह है…बस एक ही, बस एक ही

जन्मदिन के तोहफे में दे दूँ ईश्वर से की गई प्रार्थना
हर पल साथ हो हाथ परमेश्वर का करूँ यही कामना
विशेष उद्देश्य हो जीवन का एक दीप तुम जलाना
बार बार यह दिन आए मिले मंगलमय उजालों का खजाना
दुआओं में बसा यह कौन है? वह है…बस एक ही, बस एक ही

आँखों के सामने अनर्थ होता देखकर चुप हो जाते हैं लोग
कुर्सी और राजनीतिक चुप्पी का समीकरण बनाते हैं लोग
परन्तु कोई है निडर यहाँ जो खरी खरी सुना देता है
सामने ही सच को सच झूठ को झूठ कह देता है
निर्भय जिगर वाला कौन है? वह है…बस एक ही, बस एक ही

निष्प्राण संरचनाओं को देख सुलग उठती है चिंगारी आँखों में
सर्वत्र होती है उदासियाँ ढोते हैं काँधों पर उम्मीदों के पहाड़
छीन लेना चाहता है नगरीय जीवन दूब और बरगद की हंसी
तब धड़कता मचलता है दिल न्याय को परोसने के लिए
कलम का नायक कौन है? वह है…बस एक ही, बस एक ही

हँसी जिसकी होठों पर नहीं प्राणों में बसती है
सरलता जिसके स्वभाव में नहीं व्यवहार में झलकती है
जान नहीं पहचान नहीं मात्र कुछ शब्दों में इबादत दिखती है
एक आवाज और छायाचित्र से पहचान पुरानी लगती है
छाँव सा सहारा कौन है? वह है…बस एक ही, बस एक ही

उत्तर प्रदेश की बयार मनाती है जैसे हर पल कोई उत्सव
हवाओं में घुला केसर प्रकाश जन्मा किरणों का हुआ प्रसव
फूल खिलखिला कर दे रहे कविताओं को जीवन
तब *”दीदी”* कहकर आती है एक आवाज़ गोण्डा से उद्भव
है कौन जो मुस्कुरा रहा है? वह है…बस एक ही, बस एक ही

न अमरता की चाहत न विश्व प्रसिद्ध हेतु परिपालित
मिट्टी में जन्मा मिट्टी से बना मिट्टी में हुआ अंकुरित
पक्षाघात ने निष्क्रिय किया तब हुई वैचारिकी महान
साहित्यिक अवदान संग निभाया निज धर्म किया देहदान
विभूति वह कौन है? वह है…बस एक ही, बस एक ही

अनंतगामिनी राहों सा बढ़ता जा रहा जिनके मित्रों का कारवाँ
हर मनुज अपना सा लगे जीने का यही फलसफा
हर गिरते को उठाना सच झूठ को दर्पण सा चमकाना
डरते हैं मौत से कायर मौत को जिंदगी रहते अपनाना
है हुनर जिसमें वह कौन है? वह है…बस एक ही, बस एक ही

कलम जिसकी भर देती है चाँदनी में रजत रंगत
लहर लहर स्वयं जीमती प्रेम से पंगत दर पंगत
हवाओं में पहचान की तरंगें प्यारी लगती जिसकी संगत
समीक्षा और व्यंग्यात्मक लेख का हर नाद जैसे हो अनहद
कलमकार वह कौन है? वह है…बस एक ही, बस एक ही

कवि सुधीर श्रीवास्तव जी के जन्मदिन(०१ जुलाई) पर एक काव्यमय तोहफा

रंजना श्रीवास्तव
नागपुर, महाराष्ट्र
Ranjana

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *