युगों युगों से, काल काल में, वेदों में ,पुराणों में
आलौकिक है महिमा मंडित,शास्त्रों में व्याख्यानों में।
बिहू,पोंगल,माघी,ओणम खिचड़ी कोई तिलचौली
विभिन्न नाम से संक्रान्ति इस भारत में जाती बोली।
दक्षिण से उत्तर को आते सारँग सूर्य भगवान
किसी पिता का अपने पुत्र के घर की ओर प्रस्थान।
धनु राशि को त्याग सूर्यदेव कर रहे मकर प्रवेश
इस गोचर ही उत्तरायण का होता है श्री गणेश।
कपिल आश्रम से होके गङ्गा, सागर में जाके समाईं
जहाँ जहाँ चले भागीरथ बाबा वहाँ वहाँ गंगा माई।
आज के दिन ही भीष्म पिता ने देह को कीजो त्याग
पुण्य परताप संगम नाहन से मोक्ष दिलाये प्रयाग।
नित बढ़ेगी दिन की अवधि, होगी नित रात्रि क्षीण
सूर्य किरण का प्रकीर्णन होगा और तिमिर संकीर्ण।
‘दीपक’ आज हैं सारे पापी भय से सहमे आक्रान्त
शुभ अतिशुभ हो सारे जग को,ये पर्व मकर संक्रांति।