भारत के माथे की बिंदी
भाषा बड़ी ही प्यारी हिंदी।
सीख रहे विदेशी हिंदी
भूल रहे स्वदेशी हिंदी।
क्यों शरमाते बोल रहे हो
गर्वित होकर बोलो हिंदी।
सागर है अक्षर-अक्षर में
गागर में सागर है हिंदी।
लगे कुँवारी होके सुहागिन
अपने घर में परायी हिंदी।
पूजा सब करते हिंदी में
पर नहीं पूजा करते हिंदी।
एक राष्ट्र स्वयं हो जायेगा
सबकी बोली होगी हिंदी।
सच्चा न्याय मिलेगा तभी
बने न्याय की भाषा हिंदी।
हिंदी के चलचित्र बने पर
उनमें होती नहीं है हिंदी।
कैसा ये दुर्भाग्य है ‘दीपक’
हिंदी दिवस में सिमटी हिंदी।