हवाएं चलती रहती है
मंजिल मिलती रहती है।
कभी हुई तेज तो लोगों ने
उसे आंधी का नाम दे दिया।
और हुई जो तबाही इसे तो
उसे हवाओं के नाम मड़ दिया।
चाहकर भी हवाएं अपनी
नरमी नहीं छोड़ती है।
चले फूलों चंदन के बागो में
तो महका देती है बागो को।
अगर चली विपरीत दिशाओं में
तो दोषित जहाँ को कर देती।
परंतु चलती रहती है
ये हवाएं चारो दिशाओं में।
कौन किस तरह से लेता है
इन हवाओ का आनंद यहाँ।
बहुत होते जमाने में जो
हवाओं के संग बहने लगते है।
परंतु बीच बीच में वो
अपना फन दिखाते रहते।
और हवाओं को अपनी
तरफ मोड़ना चाहते है।
पर हवाएं किसी की
गुलाम कभी नहीं होती।
इसलिए समान भावों से
चारो दिशाओं में बहती रहती।।