left circle(3)

कहां बरसती है बरसात ,
भले ही हो बादलों की बारात ।
सुखी रूई के फाए से ,
इधर-उधर उड़ते रहते हैं ।
काम न आए मरहम रखने के भी ,
जख्म हरे और रिसते रहते है ।
और तो और ,
ठंड में गर्माहट का न नामो निशान,
कैसे कोई सूरत को कह दे सुंदर ।
सीरत ही होती है
सही में गुणो का आदर ।
आभासी और काल्पनिक ,
तरह-तरह के रूपों से भ्रमित ,
काम भी न आते ,
रंग भरने के ,कल्पनाओं में।
बस यूँही इधर उधर
यायावर से टहलते ।
इंतजार ….बस इंतजार रहता है,
सिर्फ काले घने ,बादलों का ,
घने-घने काले-काले ,
उमड़ते -घुमड़ते ।
बिजलियों से प्रकाशित
व्योम पर चलते और फुदकते ।
काले हैं तन के,पर मन के हैं उजले ,
बरसे ये तो अंधियारे घरों में
चिराग जगमग करते जले ।
बरस सके बूंदों की रिमझिम से ,
धरती के तन पर मन पर ,
भिगो सके आंचल को
आद्रता पहुंचे आत्मा तक।
गति बने हरियाली
की उष्ण रेत के आँचल तक ।
फसलें बहे अनाज उपजे
और तन-मन हरा कर दे ।
सफेद बादल
सूखे रुई के फाए से
काले बादल ,
घनघोर घटा बरसाए से।

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