इस बात का डर है,
वो कहीं रूठ न जायें ।।
नाजुक से है अरमान मेरे,
कही टूट न जायें।।
फूलों से भी नाजुक है,
उनके होठों की नरमी ।।
सूरज झुलस जाये,
ऐसी सांसों की गरमी ।।
इस हुस्न की मस्ती को,
कोई लूट न जायें ।।
इस बात का डर है,
वो कहीँ रूठ न जायें ।।
चलते है तो नदियों की,
अदा साथ लेके वो ।।
घर मेरा बहा देते है,
बस मुस्कारा के वो ।।
लहरों में कही साथ,
मेरा छूट न जायें ।।
इस बात का डर है,
वो कहीं रूठ न जायें ।।
छतपे गये थे सुबह ,
तो दीदार कर लिया ।।
मिलने को कहा शामको,
तो इनकार कर दिया ।।
ये सिलसिला भी फिरसे,
कहीं टूट न जायें ।।
इस बात का डर है,
वो कहीं रूठ न जायें ।।
क्या गारंटी है की फिरसे,
कही वो रूठ न जाएं ।।
मिलने का बोल कर
कही भूल न जाये ।।
हम बैठे रहे बाग़ में,
उनका इंतजार करके ।।
वो आये तो मिलने पर
देखकर हमें चले गये ।।
उन्हें डर था इस बात का,
की कोई हमें देख न ले ।।