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लगता है हमारा आपका
साथ बस यही तक था।
आप अपने आप को
बहुत व्यस्त समझते हो।
और सामने वाले को
अपने से कम आंकते हो।
जबकि सामने वाला व्यस्त
होकर भी दोस्तो से मिलता है।
हमारी और तुम्हारी सोच में
यही बहुत बड़ा फर्क है।
इसलिए तुम मस्त रहो अपने में
और मुझे छोड़ दो मेरे हाल पे।।

अपने आपको तुम कभी
दुसरो के लिए जी कर देखो।
अपने काम का जिक्र इतना
न करो की समाने वाला।
अपने आपको खुद शर्मीदा
अपनी ही नजरो में समझे।
जबकि वो मिलने मिलाने में
अपनी जिंदगी को जीता है।
खुद खुश रहता है और
औरों को भी खुश करता है।
ऐसे इंसान को समाज और
तुम क्या कहते हो…..।।

हर किसी को इंसान खुश
इस जमाने में कर नहीं सकता।
घाव जो दिल पर लगे उसे
समय से पहले भर नहीं सकता।
लाख चापलूसी करे वो इंसान पर
सामने वाले के दिलको पड़ लेता है।
और फिर अपनी जिंदगी को वो
फिरसे अपने अनुसार जीता हैं।
छोड़ देता है साथ ऐसे लोगों का
जो खुदके सिवाए औरों के नहीं।
इसलिए तो कवि लेखक सदा ही
अंधेरो में रोशनी की किरण ढूँढता है।।

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