अधरों को अधर से सटा कर प्रिय
चूम लेना ये चुंबन कतई ना हुआ
वासना की झुलसती हुई आग में
होंठ अपने जलाना भी चुंबन नहीं
अधरों पर गड़े हों अधर ज़ोर से
हाथ नितंब व छाती दबाते रहें
प्यास अपनी बुझाना ये चुंबन नहीं
सिर्फ हवस को मिटाना ये चुंबन नहीं
गर इसी को चुंबन समझते हो तुम
तो जान लो प्रेम तुमने किया ही नहीं
गर किया होता तुमने तनिक प्रेम भी
तो जान लेते कि चुंबन होता है क्या
जो जान लेते ये चुंबन किसे कहते हैं
तो मान लेते कि चुंबन तुमने किया ही नहीं
गहरी मुस्कानों से चुमना भाव को
पीड़ा अपनी दिखा, छू लेना किसी के घाव को
अहसासों भरे चंद अल्फाज़ों से
चूम लेना किसी के मन की गहराई को
साथ सम्मान के दिल में उतर जाना और
नाप लेना किसी दिल की उतराई को
चूम आँखों से लेना किसी की मुस्कान को
झुका देना अपने झूठे अभिमान को
घुल जाना धीरे से किसी की आत्मा में
अंतर भूल जान महबूब और परमात्मा में
चूम कर किसी की सबसे बड़ी दुर्बलता को
खींच कर पास ले आना उसकी सफलता को
यही चूमने का असल अर्थ है
आत्मा चूम लेना ही
चुंबन की प्रथम शर्त है
चूमने को मज़ा कभी मत मानना
चूमने का सुख तुम पहचानना
अगर इस तरह से चूमना जानते हो तुम
और इसी को प्रेम मानते हो तुम
तो सच जानों प्रेम की अंतिम विरासत हो तुम
बस यूँ ही नहीं, एक ख़ास इबादत हो तुम
इस पवित्र सोच को मरने ना देना कभी
जिसकी आत्मा को तुम चूम लो
उसे फिर ज़माने से डरने ना देना कभी

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