आज उसका ही बोलबाला है
जो सर से पाँव तक घोटाला है
उसके घर रोज ही दिवाली है
अपने घर रोज ही दिवाला है
अपनी संसद है बगुले भक्तों की
तन उजला है जिगर काला है
सुना है मुल्क के दलालों को
वतन का ताज मिलने वाला है
मैं कहना चाहता बहुत कुछ हूँ
मेरे होंठों पे मगर ताला है
मैं मजबूरियों की ख्वाइश हूँ
मुझे लाचारियों ने पाला है।