New Education Policy
नई शिक्षा नीति 2020 के ड्राफ्ट पर अचानक ही मंजूरी नहीं मिली है, बल्कि यह 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के घोषणा पत्र का हिस्सा थी। सरकार में आने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने इस एजेंडे को छोड़ा नहीं और नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिए 31अक्टूबर 2015 को पूर्व कैबिनेट के सचिव टी.एस.आर.सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में 5 सदस्यों की कमेटी बनवाई थी, कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 27 मई 2016 को प्रस्तुत कर दी और इसके बाद 24 जून 2017 को इसरो के प्रमुख वैज्ञानिक के. कस्तूरी रंगन की अध्यक्षता में 9 सदस्यों की कमेटी को नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई। 31 मई 2019 को यह ड्राफ्ट मानव संसाधन विकास (एच.आर.डी.) मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को सौंपा गया। ड्राफ्ट पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एच.आर.डी.) ने आम लोगों के सुझाव मांगे थे और इस पर करीब दो लाख सुझाव आए। इसके बाद नई शिक्षा नीति का निर्माण पूर्ण किया गया और 29 जुलाई 2020 को केंद्रीय कैबिनेट में नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट को मंजूरी दे दी गई।
सरकार का कहना है कि बदलते वक्त की जरूरतों को पूरा करने के लिए, शिक्षा में गुणवत्ता को बढ़ाने लिए, विश्व पटल पर नवीनता व शोध में उन्नति के लिए, देश को ज्ञान का विश्व गुरु बनाने के लिए आदि कई अन्य करणों से नई शिक्षा नीति की आवश्यकता है। वर्तमान में जो शिक्षा नीति चल रही है वह 1986 में राजीव गांधी सरकार के दौरान लागू की गई थी, इसमें सन 1992 में नरसिम्हा राव सरकार के द्वारा कुछ बदलाव किए गए थे लेकिन अब नरेंद्र मोदी सरकार पूरी तरह से इस व्यवस्था को बदल रही है और यह समय की मांग के अनुसार उचित ही है।
सबसे पहला बदलाव जो नई शिक्षा नीति 2020 के द्वारा किया जा रहा है वह मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय करना है, अब मानव संसाधन विकास मंत्री को शिक्षा मंत्री कहा जाएगा। जब देश आजाद हुआ अर्थात 1947 से लेकर 1985 तक शिक्षा मंत्री और शिक्षा मंत्रालय एक ही हुआ करते थे, लेकिन राजीव गांधी सरकार ने इसका नाम बदलकर मानव संसाधन मंत्रालय कर दिया था इस नाम को लेकर आर.एस.एस से जुड़े संगठन भारतीय शिक्षण मंडल ने आपत्ति भी जताई थी किन्तु उस समय इस बात पर अधिक ध्यान नही दिया गया और फिर पुनः वर्ष 2018 के अधिवेशन में नाम बदलने की मांग उठाई गई, इसके पक्ष में यह दलील दी गई थी कि मानव को संसाधन नहीं माना जा सकता है, यह भारतीय संस्कृति व मूल्यों के खिलाफ है। इस तरह अब मानव संसाधन मंत्री, शिक्षा मंत्री कहलाए जाएंगे और वर्तमान मानव संशाधन विकाश मंत्री जो कि आप शिक्षा मंत्री है रमेश पोखरियाल निशंक उन्होंने अपने इंटरव्यू में कहा है कि “देश के प्रधानमंत्री ने जो नए भारत के निर्माण की बात की है जो स्वच्छ भारत होगा, स्वस्थ भारत होगा, सशक्त भारत होगा, समृद्ध भारत होगा, श्रेष्ठ भारत होगा, एक भारत होगा उस नए भारत के निर्माण में यह नई शिक्षा नीति 2020 मील का पत्थर साबित होगी।”
नई शिक्षा नीति का सबसे अधिक प्रभाव स्कूली शिक्षा और उच्च शिक्षा पर पड़ेगा अभी हमारे स्कूल 10 + 2 की व्यवस्था के आधार पर संचालित किए जाते थे अर्थात दसवीं तक सारे सब्जेक्ट की पढ़ाई होती थी और 11वीं से अपने विषयों का चयन किया जाता था जिसके अंतर्गत गणित, विज्ञान, वाणिज्य, कला, कृषि आदि को सम्मलित किया गया था किन्तु अब इस नई व्यवस्था को 5+3+3+4 बताया गया है इसमें स्कूल के आखिरी 4 वर्ष यानी कक्षा 9 से कक्षा 12 तक एक समान माने जाएंगे जिसमें विषय  गहराई से पढ़ाई जाएंगे, लेकिन इसमें विषय चयन करने की आवश्यकता नहीं होगी इसमें मल्टीस्ट्रीम शिक्षा कराई जाएगी गणित वाला बच्चा चाहे तो हिस्ट्री भी पड़ सकता है या पॉलिटिकल साइंस भी पढ़ सकता है अथवा कोई भी अतरिक्त गतिविधि जैसे संगीत या खेलकूद आदि, इसे भी एक विषय की तरह ही शामिल किया जाएगा, ऐसे रुचिकर विषयों को अलग नहीं माना जाएगा। 3 से 6 वर्ष के बच्चों के लिए अलग पाठ्यक्रम तय किया जाएगा जिसमें उन्हें खेल के तरीकों से सिखाया जाएगा और इसके लिए शिक्षक को भी अलग से प्रशिक्षण दिया जाएगा। कक्षा 1 से लेकर कक्षा 3 के बच्चों को यानी 6 वर्ष से लेकर 9 वर्ष तक के बच्चों की लिखना पढ़ना आ जाए इस बात पर अधिक जोर दिया जाएगा, इसके लिए राष्ट्रीय मिशन भी प्रारंभ किया जाएगा। कक्षा 6 से ही बच्चों को व्यावसायिक पाठ्क्रम पढ़ाए जाएंगे, इससे बच्चों में कौसल विकास हो सके इसका प्रयास किया जाएगा और इसी समय अवधि में बच्चों को इंटर्नशिप भी कराई जाएगी जिसमें वे कभी किसी बढ़ाई, किसी दुकानदार,किसी पेंटर की दुकान पर जाकर कार्य सीख सकेंगे। छठी क्लास से ही बच्चों के प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग के मॉड्यूल विकसित किए जाएंगे उन्हें कोडिंग भी सिखाई जाएगी। इसके अलावा कुछ अन्य वदलाव जैसे स्कूलों के सिलेबस में बदलाव किया जाएगा, नए सिरे से पाठ्यक्रम तैयार किया जाएगा जो पूरे देश में एक जैसा होगा। साथ ही इस बात पर भी जोर दिया जाएगा कि कम से कम पांचवी क्लास तक बच्चों को अपनी मातृभाषा में पढ़ाया जा सके। स्कूल में आने से पहले भी बच्चों को क्या पढ़ाया सिखाया जाएगा इसके बारे में बच्चों के अभिभावकों को जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी। बोर्ड की परीक्षा की अहमियत को कम करने की भी बात की गई है, साल में दो बार बोर्ड की परीक्षाएं करवाई जा सकती हैं, बोर्ड की परीक्षा में बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर भी हो सकते हैं, इसके अलावा बच्चों के रिपोर्ट कार्ड में सिर्फ टीचर का मूल्यांकन नहीं होगा बल्कि एक ऐसा कॉलम भी होगा जिसमें विद्यार्थी स्वयं ही अपना मूल्यांकन कर सकेगा, और साथ ही एक ऐसा कॉलम भी होगा जिसमें उसके सहपाठी उस विद्यार्थी का मूल्यांकन करेंगे, यह कार्य अति सराहनीय है इससे बच्चों में कई प्रकार के गुणों का विकास होगा।
12वीं के बाद की कॉलेज अथवा यूनिवर्सिटी की पढ़ाई उच्च शिक्षा के अंतर्गत आती है अब यह मल्टीपल एंट्री और एग्जिट वाली होगी, इसका मतलब यह है कि यदि किसी विद्यार्थी ने बी. फार्मा. में एडमिशन लिया और 2 सेमेस्टर के बाद वह कुछ और पढ़ने का मन करने लगा या उसे बी. फार्मा. नहीं करना है तो ऐसी स्थिति में उसका 1 साल खराब नहीं होगा इस 1 साल के आधार पर उसे सर्टिफिकेट प्राप्त होगा वहीं 2 साल पढ़ने पर डिप्लोमा प्राप्त होगा, कोर्स पूरा करने पर विद्यार्थी को डिग्री प्राप्त होगी और इस तरह की व्यवस्था बनाई जाएगी कि कहीं और भी एडमिशन लिया जाए तो यह रिकॉर्ड मान्य किए जाएंगे इसे सरकार की पॉलिसी में क्रेडिट ट्रांसफर कहा गया है। नई शिक्षा नीति के अनुसार बी.कॉम. अथवा बी. ए. या बी. एससी. वाले कोर्स जो 3 साल के होते हैं नई शिक्षा नीति में इस तरह के विकल्प होंगे कि जो विद्यार्थी नौकरी के लिहाज से पढ़ रहे हैं उनके लिए 3 साल का ग्रेजुएशन और जो विद्यार्थी भविष्य में शोध के क्षेत्र में काम करना चाहते हैं उनके लिए 4 साल का ग्रेजुएशन होगा और उसके बाद 1 साल का पोस्ट ग्रेजुएशन और 4 साल का पीएचडी होगा एमफिल की डिग्री को यहां पर समाप्त कर दिया गया है।
बहु-अनुशासनिक (मल्टीडिसीप्लिनरी) शिक्षण व्यवस्था होगी कोई स्ट्रीम नहीं होगी कोई भी विद्यार्थी मन चाहे विषय चुन सकता है अर्थात आप फिजिक्स में ग्रेजुएशन कर रहे हैं और आपको यदि संगीत या इतिहास में रुचि है तो आप उसे भी पढ़ सकते हैं हालांकि इसमें अनिवार्य और ऐच्छिक विषय की व्यवस्था रहेगी। ऐसी व्यवस्था भारत के कई बड़े कॉलेज विश्वविद्यालय में पूर्व के समय से संचालित की जा रही है, इसके अलावा कॉलेजों में ग्रेडेड ऑटोनॉमी होगी जैसे एक यूनिवर्सिटी के अधीनस्थ कई कॉलेज होते हैं जिन की परीक्षाएं यूनिवर्सिटी कराती है अब कॉलेजों को भी यह स्वतंत्रता मिलेगी साथ ही उच्च शिक्षा के लिए एक सिंगल रेगुलेटर बनाया जाएगा वर्तमान समय में कई ऐसी संस्थाएं हैं जैसे यू.जी.सी. ए.आई.सी.टी.ई. जो हायर एजुकेशन के नियम बनाती है किंतु अब सब को मिलाकर एक रेगुलेटेड यानी सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाई जाएगी, अर्थात सेंट्रल यूनिवर्सिटी हो अथवा स्टेट यूनिवर्सिटी या फिर डीम्ड यूनिवर्सिटी सभी में एक जैसा कार्य होगा,ऐसा नहीं होगा कि बिहार या मध्य प्रदेश की यूनिवर्सिटी में अलग तरह की पढ़ाई हो रही हो और दिल्ली यूनिवर्सिटी में या महाराष्ट्र के किसी कॉलेज में कुछ अलग से पढ़ाया जा रहा हो। इसके साथ ही अब कोई भी प्राइवेट कॉलेज अपने मन मुताबिक फीस वसूल नहीं कर सकता इसके लिए भी नियम बनाए जा रहे हैं जा रहे हैं । शोध प्रोजेक्ट्स की वित्त पोषण के लिए अमेरिका की तर्ज पर नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाया जाएगा जो विज्ञान के अलावा कला के विषयों में भी शोध परियोजना के लिए वित्त प्रदान करेगा। शोध तकनीक को बहुत बढ़ावा दिया जाएगा वर्चुअल लैब प्रारंभ किए जाएंगे। स्कूल के बाद कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए कॉमन एंट्रेंस एग्जाम होंगे इसके लिए नेशनल एसेसमेंट सेंटर बनाए जाने की भी बात सामने आई है और जब कॉलेज से बच्चा पास होगा तब उसके पास एक शैक्षणिक योग्यता होगी।
 यह एक आदर्श स्थिति है इसमें कोई संदेह नही किन्तु वास्तविकता का ज्ञान हमें और सरकार को होना चाहिए और यह भी समझना चाहिए की वर्तमान में भारत की शिक्षा पद्धति अपने न्यूनतम स्तर पर है। सरकारी स्कूलों व प्राइवेट स्कूल अभी भी अपने बुरे दौर पर हैं,कॉलेजों में किताबी ज्ञान तक ठीक से नही दिया जा रहा। शिक्षा अब व्यवसाय का एक माध्यम बन चुका है, बरसात में कुकुरमुत्ते की तरह हर जगह कोचिंग संस्थान उग चुके है। लगभग हर प्रदेश के स्कूलों में शिक्षकों की कमी है, भवन, मैदान या दूसरे आधारभूत सुधारों की बहुत अधिक आवश्यकता है। अतः आदर्श स्थिति में लागू करने के लिए अभी बहुत मेहनत की आवश्यकता है।अभी सिर्फ शिक्षा पद्धति नीति के ड्राफ्ट को मंजूरी मिली है इसे लागू होना बाकी है इसके बाद इसे कई इम्तिहानों से गुजरना होगा। सबसे बड़ा प्रश्न यह होगा की क्या यह नीति को शहरों से दूर गांव देहात के उन बच्चों तक पहुंचा पाएगी जहां अभी भी बिजली पानी जैसी मूलभूत आवश्यकतओं की पूर्ति नहीं हो पा रही? क्या जिन स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक नहीं है, संसाधन नहीं है वहां संगीत शिक्षण या व्यवसायिक शिक्षण और ऐसी बाकी बातें लागू हो पाएगीं? क्या सरकारी शिक्षक वर्ग अपनी आराम तलबी से ऊपर उठ पाएंगे? क्या निजी संस्थाएं शिक्षा के व्यवसायीकरण पर रोक लगने देंगी? क्या कागजों पर जो इतनी अच्छी नीति दिख रही है वह भारत के कोने कोने तक पहुंच पाएगी? इसका जवाब वक्त ही बता सकता है और यह बात भी की हम सरकारी नीतियों से कितने दूर और कितने पास है।
इन सब के वावजूद इस बात से नकारा नही जा सकता कि सरकार के माध्यम से शिक्षा व्यवस्था को सुधारने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। सरकार ने शिक्षा पर खर्च बढ़ाने का भी ऐलान किया है अब जीडीपी का 6% शिक्षा पर खर्च किया जाएगा अब तक यह लगभग 4.3% के आसपास था। नई शिक्षा नीति हो सकता है की अपने पूर्ण उद्देश्यों को पूरा न कर सके, किन्तु सरकार की तरफ से एक अच्छी पहल की गई है। लड़ाई बहुत बड़ी है और इस बार खुद के बेहतर भविष्य के लिए है।

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