Neem Tree

हमारे लोकसाहित्य में नीम के पेड़ को महत्वपूर्ण स्थान मिला है। लोकगीतों में ‘नीम के पेड़’ पर कई प्रसिद्ध लोकगीत मिलते हैं। कल एक यह प्रसिद्ध अवधी लोकगीत सुना।जिसे बहुत बार पढ़ा था लेकिन कल सुनने का मौका मिला-

“बाबा नीमीया के पेड़, जिनि काटेउ बाबा
निमिया चिरैया के बसेर, बलइआ लेउ बीरन के…।”

इसी भाव पर आधारित कुछ वर्ष पहले लोकगायिका ‘चंदन तिवारी’ की आवाज में भोजपुरी लोकगीत को सुनकर भी मंत्रमुग्ध हुआ था-

“निमिया के डाढ़ जनि कटवाईहा मोर बाबा हो
निमिया चिरइया के बसेरा हो बाबा….।

वहाँ भी “नीम के पेड़ को नहीं काटने” और “चिड़ियों के बसेरा” के खत्म होने की चिंता थी। यह इतना भावपूर्ण गीत है कि इस लोकगीत को सुनकर सिर्फ बेटियों के बाप की ही नहीं बल्कि किसी के आँख में आँसू आ जाए।

एक निमा़ड़ी लोकगीत भी बहुत प्रसिद्ध है –

‘जेवी नीम़ड़ानी छाया, तेनी माता-पितानी माया..।’

इस लोकगीत में नीम के पेड़ की छाया को माँ-पिता के प्रेम के बराबर बताया गया है।कृषक संस्कृति में औषधीय गुण और छायादार स्वभाव के कारण गांव-घर में नीम का पेड़ होना जरूरी होता है। भारतीय संस्कृति में प्रत्येक क्षण नीम के वृक्ष की आवश्यकता महसूस होती है।

“अवधी” में एक और प्रसिद्ध लोकगीत है जिसमें नीम के पेड़ लगाने पर सास-बहु का संवाद सुनाई पड़ता है-

“कउनी उमिरिया सासू निबिया लगाइन,
कौनी उमिरिया गै बिदेसवाँ हो राम।
खेलत-कूदत बहुअरि, निमिया लगाइन,
रेखिया भिनत गै, बिदेसवाँ हो राम…।”

ब्रज भाषा के इस लोकगीत में सावन के महीने में मायके जाने की इच्छुक स्त्रियों की मनोदशा का वर्णन है-

“कच्चे नीम की निबौरी, सावन जल्दी अईयो रे,
अम्मा दूर मत दीजौ, दादा नहीं बुलावेंगे,
भाभी दूर मत दीजौ, भइया नहीं बुलावेंगे..।”

बघेली भाषा के वैवाहिक गीत (गारी) में भी नीम के पेड़ का जिक्र दिखलाई पड़ता है-

“अंगने मोरे नीम लहरिया लेय
अंगने मोरे हो
जहना कउन सिंह गाड़े हिडोलना
गाड़े हिडोलना
अरे उन कर दिद्दा हरसिया झूलि झूलि जायं
अंगने मोरे नीम लहरिया लेय अंगने मां..।”

इसी प्रकार भक्तिपरक लोकगीतों में भी “नीम के वृक्ष”का उल्लेख तो आपने कई बार सुना होगा। माना जाता है कि नीम के पेड़ पर भैरव निवास करते है।इसीलिए यह जनश्रृति है कि स्नान करके नीम पर जल चढ़ाने से दुख-दरिद्रता दूर हो जाती है। लोगों का यह विश्वास भी है कि यह शीतला माता का प्रिय वृक्ष है।

कहीं-कहीं “नीम के पेड़” को मां दुर्गा का रूप माना जाता है। इन्हें नीमारी देवी भी कहते हैं और उनकी पूजा भी की जाती है। कहते हैं कि नीम की पत्तियों के धुएं से दुष्ट और प्रेत आत्माओं से रक्षा होती है।प्रसिद्ध भोजपुरी लोकगायक भरत शर्मा का गाया हुआ,यह देवीगीत तो बहुत प्रसिद्ध है-

“निमिया के डार मैया झुलेली झुलनवा…।”

इन सभी लोकगीतों को पढ़ने-सुनने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि हिन्दीभाषी क्षेत्र की अनेक भाषा और बोलियों के लोकगीत में “नीम के पेड़” का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। बहुत सारी बोली और भाषाओं के लोकगीत में नीम के पेड़ के उल्लेख पर एक व्यापक अनुसंधान किया जा सकता है।

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One thought on “लोक गीतों में नीम का पेड़”

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