poem bhula na sake hum

जिसे भूल कर भी भुला ना सके हम,
‘मनोहर’ उसे ना फिर कभी याद आ सके हम,
जिसे भूल कर भी ….

यूँ बातें बहोत की बिना बात की,
पर हाल ए दिल अपना बता ना सके हम,
जिसे भूल कर भी ….

‘मनोहर’ उनको पता अपना बताते भी क्या,
जो उम्र भर एक ठिकाना बना ना सके हम,
जिसे भूल कर भी ….

जला डाली खत और तस्वीरें भीं,
पर य़ादों के घर ना ज़ला सकें हम,
जिसे भूल कर भी ….

वो होंगे खुदा, कम तो हम भी नही,
यही सोचकर सर झुका ना सके हम,
जिसे भूल कर भी ….

जो डरते रहे उनके जंग से उम्र भर,
वो ‘ मनोहर’ खुद से ही आगे ना जा सकें हम,
जिसे भूल कर भी ….

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