ना इंतज़ार, ना आहट, ना तमन्ना, ना उम्मीद… ज़िंदगी है कि यूँ ही बेहिस हो जाती है…

मीना कुमारी ‘नाज़’

भारतीय सिनेमा की ट्रेजिडी क्वीन मीना कुमारी रवींद्रनाथ ठाकुर के खानदान से ताल्लुक रखती थी। दिलीप कुमार जहाँ ट्रेजिडी किंग के नाम से जाने जाते थे, वहीं परिणीता फ़िल्म में आम भारतीय नारियों की तकलीफ़ों का चित्रण करके अपनी छवि दुखांत भूमिकाएँ करने वाली अभिनेत्री तक सीमित हो गई जिसे सभी ट्रेजिडी क्वीन के रूप में देखने लगे। मीना कुमारी ने आठ साल की उम्र से ही फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में काम करना शुरू कर दिया था। मीना कुमारी ने ग़ज़ल 1964, पुर्णिमा 1965, नूरजहाँ 1967, चन्दन का पालना 1967, पाकीज़ा 1972 जैसी बेहतरीन फ़िल्मों में शानदार अभिनय किया है। उन्हें पर्दे पर देखना कभी न भूलने वाला एहसास ही था। जिसने उन्हें काजल 1966, साहिब बीबी और ग़ुलाम 1963, परिणीता 1955, बैजू बावरा 1954 फिल्मों के लिए चार बार फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार भी दिलाया है। 1956 में शुरू हुई पाकीजा 1971 में पूरी हो गई और 3 फरवरी 1972 को मराठा मंदिर मंबाई में पहला शो दिखाया गया। पाकीजा मीना की ज़िंदगी की सबसे बड़ी फिल्म रही है।

          गंभीर और तन्हा-सी लगने वाली इस अदाकारा ने नाज़ के नाम से दिलों को झकझोर देने वाली नज़्म लिखना भी शुरू कर दिया था। जिन्हें मुशायरों में स्वयं ही पढ़ा भी करती थीं। इनमें उन्होंने अपनी ज़िंदगी की उदासी को ही बयां किया है। कुछ कहानियाँ भी लिखी थी, जिनमें अपने जीवन की तशरीह पेश की। मीना कुमारी का पहला एल्बम आई राइट आई रिसाइट के नाम से आया। इसमें उन्होंने खुद की आवाज में ही गाया था या अपने जज़्बातों को लफ्जों की शक्ल दी थी। वे दर्द भरी आवाज के लिए मशहूर थी। दर्द बीनती रहीं समेटती रहीं और दिल में बसाकर कहती रहीं : 

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता,

धज्जी-धज्जी रात मिली।

जिसका जितना अंचल था,

उतनी ही सौग़ात मिली।

जब चाहा दिल को समझें,

हंसने की आवाज़ सुनी।

जैसे कोई कहता हो, लो

फिर तुमको अब मात मिली।

बातें कैसी? घातें क्या?

चलते रहना आठ पहर।

दिल-सा साथी जब पाया,

बेचैनी भी साथ मिली।

          उनका यह सफर कितना लंबा था उसे पूरा करने में एक उम्र गुज़ारनी पड़ी। मीना जिस तग़ाफ़ुल को बचपन से देखती आई थी, उसने जवानी में भी साथ न छोडने के कसम खा रखी थी। कुछ समय बाद अपने शौहर कमाल अमरोही से संबंधों में तनाव के कारण अलग होने के बाद 1964 से जुहू में एक बड़े-से बंगले में रहने लगीं, यहाँ मीना के साथ शराब, मिलों पसरा हुआ सन्नाटा और तनहाई के साथ कुछ यादें ही रह गई थीं। उनकी इस तन्हा बस्ती में रात ही थी और उस रात में चाँद के साथ थे सुबकते हुए तारे। इन अँधेरी रातों में दर्द के टिमटिमाते दिये अब बुझने से लगे थे। संगीतकार ख़ैयाम मीना कुमारी के करीबी रहे। इन्होंने मीना को गाने के लिए प्रेरित भी किया। और अपनी  खामोशी को कुछ इस अदा में गुनगुना दिया :

ये रात, ये तनहाई, ये दिल के धाड़ने की आवज, ये सन्नाटा ये डूबते तारों की खामोश अजब ख़्वाहिश ये वक्त की पलकों पर सोती हुए वीरानी जज़्बाते मोहब्बत की ये आखिरी अंगड़ाई बजते हुए हर जनिब  ये मोत की शहनाई सब तुमको बुलाते हैं पल भर को तुम आ जाओ बंद होते हुए मेरी आँखों में मोहब्बत का एक ख्वाब सजा जाओ।

मीना कुमारी ने अपनी रचनाओं को गुलज़ार साहब के हवाले कर दिया। जिन्हें एक किताब के रूप में प्रकाशित किया। इस घटना पर गुलज़ार कहते हैं :

          मैं इस ‘मैं’ से बहुत डरता हूँ। शायरी मीना जी की हैं, तो फिर मैं कौन? मैं क्यों? मीना जी की वसीयत में पढ़ा कि अपनी रचनाओं, अपनी डायरियों के सर्वाधिकार मुझे दे गई हैं। हालांकि उन उप अधिकार उनका भी नहीं था, शायर का हक़ अपना शेर भर सोच लेने तक तो है, कह लेने के बाद उस पर हक़ लोगों का हो जाता है। मीना जी की शायरी पर वास्तविक अधिकार तो उनके चाहने वालों का है।

और वह मुझे अपने चाहने वालों के अधिकारों की रक्षा का भार सौंप गई हैं। यह मेरी उस ज़िम्मेदारी को निभाने का प्रयास है।     

          जरूरत से ज़्यादा शराब पीने के कारण लीवर सिरोसिस नमक बीमारी हो गई, जिसके इलाज के लिए इस्लिंग्टन, लंदन भी गई। वहाँ रॉयल फ्री इनफर्मरी मे एडमिट रहीं जहाँ शैला शेरलॉक ने इलाज किया। और ठीक होकर कुछ हिदायतों के साथ वापस आई। शराब छोडने के बाद पान खाकर ठंडा पानी पीना शुरू कर दिया। अब सेहत फिर से खराब होने लगी थी। अपनी बहनों खुर्शीद और मधु से कहा :  अब मैं चली अपना कफन  मक्का से लेकर आई थी। मैंने अपना काम कर दिया। लेकिन मैं उन लोगों को कभी माफ नहीं करूंगी, जिन्होंने मेरी और कमाल की शादी तुड़वाई। लाखों रुपए दान करने वाली मीना के पास अंत में खुद के इलाज के लिए पैसे नहीं बचे थे ये अजीब विडंबना थी। मीना कुमारी एक मशहूर अदाकारा थीं। और जितनी शोहरत थी उतने ही गम। मुंबई के रहमताबाद कब्रिस्तान में मीना की क़ब्र है। जहाँ आज भी उनके चाहने वाले उनका एहतिराम करते हैं।

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