धान के कटोरे के नाम से प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ धान की विभिन्न फसलों के प्रकारों के साथ ही साथ कला के विभिन्न प्रकारों के लिए जाना जाता है। छत्तीसगढ़ के खजाने में से एक ऐसा ही खजाना गोदना चित्रकला है। गोदना अपने काले रंग अपनी बनावट और रेखाओं के कारण सुंदर और आकर्षित लगते हैं। गोदना से गोदना चित्रकला तक का सफर देखे तो गोदना समय के साथ अपने वास्तविक रूप को खोकर वर्तमान में टैटू का रूप ले चुका है और नए रंग और रूप में आज लोगो के बीच है। गोदना कहे या टैटू इसका मुख्य उद्देश्य सुंदरता ही रहा है इस लिए लोग इसे अपने शरीर में गोदवाना पसंद करते है।
गोदना एक प्राचीन कला है जिसकी पृष्टभूमि मानव शरीर रहा है। गोदना को गोदने के लिए पारंपरिक रूप से सुई और प्राक्रतिक रंगों का प्रयोग किया जाता था। छत्तीसगढ़ में गोदना गोदने का कार्य यहाँ के देवार नामक जनजाति द्वारा किया जाता था जो बंजारे कबीले में आते है। घूम-घूम कर ये लोग अपने रोजी रोटी के लिए एक गाँव से दूसरे गाँव मागते गाना गाते हुये गोदना भी गोदा करते थे। लेकिन समय के साथ ये लोग एक जगह स्थाई रूप से बसने लगे और लोगो ने भी इन्हे अनाज देना बंद कर दिया इसके चलते इनका गाना गाना और गोदना गोदना भी बंद होता चला गया। गोदना के विलुप्त होने का एक और कारण है इसे गोदाते समय होने वाला दर्द और इसका डिजाईन जो आज के शिक्षित लोग इसे पसंद नहीं करते इस कारण ये गोदना आज की पीढ़ी से दूर हो चुका है।
इस लिए इस कला को जीवित रखने के लिए इसे चित्रकला के रूप में लाकर गोदना को जीवित रखने का एक प्रयास किया जा रहा है। गोदना के संबंध में कुछ बाते सुनने को मिलती है। जब बेटी की शादी की जाती है तब बेटी को यह माईके से निशानी के रूप में दी जाती है। इसके पीछे आर्थिक कारण भी रेहता है कहा जाता है जिसके शरीर में जितना अधिक गोदना हुआ करता था वह लड़की उतने ही संपन परिवार से होती है। वही दूसरी ओर यह सुनने को मिलता है की बस्तर के बैगा जनजतियों द्वारा पूरे शरीर में गोदना वहाँ के राजा से खुद को बचाने के लिए महिलाए अपने शरीर में गोदवा कर अपने शरीर को काला और कुरूप बानवा लिया करती थी। गोदना के संबंध में बहुत सी बाते सुनने को मिलती है। गोदना को इलाज के तौर पर भी गोदाया जाता है गोदना एक्योप्रेसर का भी काम करती है विशेष कर लकवा की बीमारी, जोड़ो के दर्द और बच्चे के ना चलने पर भी गोदना को गोदवाया जाता था।
आज वर्तमान समय में गोदना केवल पुरानी पीड़ी तक ही सिमट कर रह गई है और उनके साथ ही यह खतम भी होते जा रही है। इस कला को जीवित रखने का एक ही जरिया है की इसे हम पेपर पर और कैनवास पर उतार लाये ताकि यह कला अपने वास्तविक रूप में सदा जीवित रहे और आने वाली पीड़ी इस कला से परिचित रहे। गोदना चित्रकला पर अधिक से अधिक काम करने की आवश्यकता है ताकि इसे इसकी जगह मिल सके।
मैं ने पुराने डिजाईन के आधार पर इसके वास्तविक काले रंग का प्रयोग करते हुए गोदना को गोदना चित्र का रूप देने का प्रयास किया है ताकि यह अन्य चित्रकलाओं की तरह अपनी जगह और पहचान बना सके इस पर अधिक से अधिक काम करने और इसे लोगो तक पहुंचे का मेरे यह एक प्रयास है। यह कला विलुप्त ना हो और आने वाली पीड़ी इसे जाने और इस कला को आगे बढ़ती रहे।