vidhawa

भारत के माध्यम बर्गीय परिवार कि है जिसमे पति के न रहने के बाद उसकी अमानत उसकी संतानो कि परिवरिश और गिरते नैतिकता के समाज में स्वयं और पति के धरोहरों रक्षा कर पाना विधवा के लिये चुनैति और जीवन तिरस्कार से सामाजिक युद्ध लड़ने का सुबह शाम दिन रात के अलावा कुछ नहीं रह जाता ।कहानी कि शुरुआत शशांक के दुर्भाग्य बस चौतीस वर्ष की आयु में हार्ट अटैक से मृत्यु कारण उसकी विधवा तेजस्वनी और उसके दो बच्चों के इर्द गिर्द घूमती निहित स्वार्थ में गिरते पारिवारिक रिश्तों  में सिकुड़ती मानसिकता के षड़यंत्र लालज और बैमंस्वाता कि पृष्टभूमि के चारों और घूमते है।एक ऐसा परिवार जिसके दो बेटे में एक के त्याग पर दूसरा पिता कि जगह अनुकम्पा पर नौकरी कर रहा है और दूसरा भाई जो शशांक जो त्याग कि प्रतिमूर्ति प्रैववेट नौकरी करता है और चौतीस साल कि उम्र में हार्ड अटैक।के कारण दुनियां छोड़ जाता है और अपनी पत्नी के पास अपनी अमानत दो बेटों की जिम्मेदारी छोड़ जाता है तेजस्वनी के पास आय का कोईं जरिया नहीं रहता है । वह पति कि मृत्यु के बाद भोपाल से दादी गायत्री देवी के साथ अपने पैतृक घर आती है जहाँ उसका देवर दिनकर उसे माकन जो उसके स्वर्गीय स्वसुर ने बनवाया था को में रहने कि इजाजत नहीं देते है और तेजश्वनि गायत्री देवी और उसके बच्चों को बहार निकाल देते है ।गायत्री देवी अपने पोते के साथ अपने सैरभ के घर आ जाती है और तेजस्वनी अपने पिता रामसनेही के घर ।चुकी गायत्री देवी के छोटे भाई संतानहीन थे सात्विक के घर में आजाने के कारण घर में रौनक आ गयी थी ।सौरभ और पूजा सात्विक का बड़ा ख्याल रखते और तरह तरह के खिलौने और उसके पसंद कि चीजे लाकर देते जिससे सात्विक बड़ा खुश रहता वह पूजा और सौरभ को मामी।पापा कहने लगा।तभी एकाएक एक दिन तेजस्वनी वहा पहुचती है सात्विक से सवाल करती है::मेरी बात का जबाब दे सात्विक क्या मेरी याद आती है सात्विक का जबाब मैं वहां नहीं जाऊंगा जहाँ सिर्फ आप हो::दादी गायत्री देवी के सवाल पर ::बेटा तुझे पूजा मम्मी और मम्मी में ज्यादा कौन अच्छा लगता है सात्विक का जबाब मम्मी तो डाँटती है पूजा मम्मी सिर्फ प्यार करती है::बचपन कि मनः स्तिति की कोमल भावनाये है जो सिर्फ प्यार को परिवरिश ही स्वीकारती है ।तेजस्वनी लौट कर अपने पिता के घर आती है और निश्चय करती है कि वह अपने और अपने बच्चों के हक कि लड़ाई अपने ससुराल में लड़ेगी ।इस कहानी में तेजस्वनी और उसके पिता के मध्य संवाद और गायत्री देवी और तेजस्वनी के संवाद में विधवा विवाह को विधवा  कि दृढता उसकी स्वतंत्रता के विवेक पर निर्णय लेने का अधिकार प्रधान करती है। जो अनुनिक समाज में महिलाओं के सम्मान और मर्यादा के जीवन का खुला आमंत्रण है कहानीकार ने बहुत तार्किक ढ़ग से विधवा विवाह कि प्रसंगिगता और प्रमाणिकता पर जोर दिया है।तेजश्वनि सौरभ के घर से अपने सात्विक को लेने जाती है उसका कथन ::यह जितना तपेगा उतना ही इसमे निखार आएगा यह पुरे जीवन गर्व से कहेगा मेरी माँ ने कष्ट सहकार भी बड़ा किया है::समाज नारी समाज के मजबूत इरादे दृढ़ निश्चय कि आधुनिक समाज कि निखरती नारी शक्ति का सन्देश देता है । सात्विक का घर चढ़ते समय सात्विक कि अभिव्यक्ति ::मैं यहाँ से चला जाऊंगा तो आप लोग मेरे मम्मी पाप तो रहोगे ही::मार्मिक।और अनेको प्रश्नो के उत्तर खोजने के लिये समाज को बिवस करता है।तेजस्वनी अपने घर आती है तब उसे दिनकर का सामना करना पड़ता है यहाँ उसमे अदम्य सहस शक्ति कि नारी जन्म लेती है जो अपने अपनी संतानो के अधिकार कि रक्षा के लिये दुर्गा काली रणचंडी बन जाती है अंतत दिनकर बिवस और कमजोर हो जाता है।सौरभ के यहाँ से सात्विक के जाने के बाद पत्नी पूजा और स्वयं को मानसिक व्यथा से परेशान होते है तभी पुष्पेश सौरभ का बहनोई सौराभ् के संतान होने या होने के कि स्तिति परिस्तिथि कि वास्तविकता से प्रमाणिकता के आधार पर यथार्थता को समझाता बताता है जो आज के परिपेक्ष में सत्यार्थ है।कहानी में संतान के एडापसन के पहलुओं पर भी इंगित करता है संतान हीन और दत्तक पुत्र के मध्य पुष्पेश का नजरिया समाज को नया नजरिया देता समाज के संपन्न संतानहीन दम्पत्तियों को गरीब असहाय के बच्चों के परिवरिश को प्रेरित करता समाज को नौनिहालों  के प्यार परिवरिश के अधिकारों के उत्तरदायित्व के प्रति संवेदनशील और सजग करते जाग्रति करना कहानी के मूल उद्धेश को निरूपित करता है

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