Bhisham-Sahni

भी‍ष्म साहनीजी के स्मरण मात्र से उनकी कालजयी रचना “तमस” की याद ताजा हो उठती है।

इस उपन्यास का एक पात्र नत्थू, मुराद अली द्वारा पांच रूपये लेकर सुअर मारता है,परन्तु दूसरे दिन, वही सुअर केलेवाली मस्जिद के सामने पडा देखकर बेचैन हो उठता है. कहने को यह मामूली सी घटना लगती हो, लेकिन वह व्यग्र हो उठता है. उसकी छाती पर बोझ पडने लगता है. मानसिक स्थिति गडबडाने लगती है. इस मामूली से लगने वाली घटना को कुशल लेखक-उपन्यासकार भी‍ष्म साहनी ने अपनी लेखनी से इसे कुछ इस तरह उदघाटित किया.” उसे अपने बाप की याद हो आयी. उसने सीख देते हुए उससे कहा था’-“बेटा, हाथ साफ़ रखना, जिसका हाथ साफ़ है,वह कोई बुरा काम नहीं करता-इज्जत की रोटी खाना” पिता की बात याद आते ही वह फ़बक कर रो पडता है।”

गोविन्द निहलानी ने इस उपन्यास पर एक फ़िल्म बनायी थी जिसमें स्टेज कलाकारों -ओमपुरी, दीपा साही, अमरीश पुरी, खुद साहनीजी, मनोहरसिंह, दीना पाठक, सईद जाफ़री सहित वीरेन्द्र सक्सेना ने गजब का अभिनय किया है, एक यादगार फ़िल्म के नाम से जानी जाती है।

सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, नैतिक, आध्यात्मिक, उद्दात विचारों और क्रियाकलापों को हम सदा से संस्कृति के आयाम मानते रहे है. भारतीय संस्कृति की इन्हीं धाराओं को उन्होंने कभी भी विलुप्त नहीं होने दिया और उसे अपनी रचनाओं के माध्यम से स्थापित करते रहे. वहीं उन्होंने जीवन के अंतर्विरोधों एवं विसंगतियों मे से भारतीय संस्कृति के विकासोन्मुख, उदार, पुरू‍षार्थी, समन्वयवादी आदि जीवन तत्त्वों को खोज निकालने का प्रयत्न किया. उन्होंने मानव जाति के पुरू‍षार्थ और उज्जवल छवि को धूमिल करने वाली मान्यताओं, धर्मिक कट्टरवादियों, धर्म-वि‍षयक संकुचित मानसिकता वाले, क्रूर-सांप्रदायिकताऒं तथा विकृत परम्पराओं का रचनाओं के माध्यम से खुलकर विरोध दर्ज किया है.
भारतीय संस्कृति धर्म प्रधान संस्कृति रही है. अपने धर्म के अलावा दूसरों के धर्म के प्रति हमारा सम्मान और आदर का भाव सदा से ही बना रहा है. भी‍षमजी की अपनी कहानी “पोखर” में भारतीय संस्कृति की विशे‍षताओं को रेखांकित करते हुए लिखा है कि “खास बात यह है कि किसी धर्म ने दूसरे धर्म के मंदिर तोडकर अपने मंदिर खडॆ नहीं किये..

मैयादास की माडी, झरोखे, पाली, शोभा यात्रा, अमृतसर आ गया है, डायन आदि कहानियों में धर्म में आये विकृत रूप को रेखांकित किया है. तमस उपन्यास का एक पात्र है एहसान अली और उसकी पत्नि राजओ, अपने को संकट में डालकर तथा अपने समाज से विरूद्ध होकर शरणार्थी हरनामसिंह और उसकी पत्नि बंतो की रक्षा करते हैं. इसी प्रकार “सरदारनी” कहानी की सरदारनी, अपने समाज के द्वारा लांछित होने पर भी, मुसलमान अध्यापक की रक्षा के लिए अपने प्राणॊं की बाजी लगा देती है. “निमित्त” कहानी का शेरसिंह मानवता के प्रति समर्पित भाव वाला एक पात्र है.”पाली” कहानी में निसंतान दंपति शकूर और जैनब अपने द्वारा पालित बच्चे को अपनी समस्त भावनाओं की बलि देकर उसके असली माता-पिता को वापिस दे देते हैं।

कबिरा खडा बाजार में वे समाज में व्याप्त कुरीतियों, अन्धविश्वासों और साम्प्रदायिक संकीर्णताऒं पर निर्ममता से कलम चलाते हैं. वे कबीर के माध्यम से यह कहलवाते हैं कि “जब तक किसी की नजर में एक ब्राह्मण है, और दूसरा तुर्क, जब तक वह इन्सान को इन्सान नहीं समझेगा. मैं इन्सान को इन्सान के गले लगाने के लिए मन्दिर के सारे पूजा-पाठ और विधि-अनु‍ष्ठान छॊडता हूँ. और मस्जिद के रोजा-नमाज छॊडता हूँ. मैं इन्सान को इन्सान के रूप में देखना चाहता हूँ”

“त्रास”, “पिकनिक” कहानी में वे बढती घृणा-वृत्ति को रेखांकित करते हैं. “इमला” कहानी में एक शिक्षक स्कूल के प्रधानाजी के लडके की शिकायत लेकर प्रधानजी के घर जाते हैं,लेकिन उनका वैभव देखकर शिकायत के बदले कहने लगते हैं-“जी, मैं वही कहने आया था कि आप निश्चिंत रहें. मैं पूरी तरह से उसका ख्याल रखूँगा.” लेखक ने इस प्रसंग से वर्तमान शिक्षा प्रणाली में अवान्छित हस्तक्षेप और उसके विपरित परिणामों के प्रभाव में अध्यापकों की मूल्यहीनता की ओर संकेत किया है. कुन्तो उपन्यास का मीरजान, ऊब कहानी का लडका, इमला, कानी का धर्मदेव, मुआवजे नाटक का जग्गा आदि ऎसे पात्र हैं जो न केवल संस्कारहीन है, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी पतित हैं, को लेकर भी‍ष्मजी ने बेबाकी से कलम चलायी है।

आपकी अनेक रचनाओं में मेले, तीज-त्योहार, नामकरण-मुंडन संस्कार, विवाह संस्कार,सहित गीत, सहित रामलीला का भी वर्णन मिलता है. मैयादास की माडी, पाली, ढोलक, शि‍ष्ठाचार, शोभायात्रा, मेड इन इटली, पहला पाठ, छिपे चित्र, ऒ हरामजादे आदि कहानियों में देखे जा सकते हैं. बसंती कहानी का पात्र दीनू संतानहीन है, अपनी मां के कथन के अनुसार उसकी पत्नि पर देवी का प्रकोप है, और वह जब तक दूर नहीं होगा, तब तक उसका गर्भ ठहर नहीं पाएगा. इस कहानी के माध्यम से वे यह बतलाने का प्रयास करते हैं कि किस प्रकार से लोग विभिन्न देवी-देवताओं में आस्था रखते हुए अपने मन में अनेकानेक प्रकार के संकल्प निर्धारित कर लेते हैं और उसकी पूर्ति के लिए देवताओं से निवेदन करते हैं. इसी प्रकार :जोत: कहानी में देवता के कोप से बचने के लिए बकरे की बलि दी जाती है. वहीं शि‍ष्ठाचार और भाईबंद कहानी में ग्रामीण संस्कृति की आत्मीयता को रेखाकिंत करती कहानी में रखा जा सकता है भटकती राख और अनोखी हड्डी, मानवीय श्रम की गरीमा को बढाने वाली रचनाएँ हैं।

इस तरह हम पाते हैं कि आपके द्वारा लिखित उपन्यासों नाटकों,निबंधों, कहानियों आदि में सांस्कृतिक तत्त्व और गहरी सांस्कृतिक चेतना का विस्तार कितना व्यापक और असरकारक है.,जहाँ एक ओर वे सांस्कृतिक विकृतियों पर गहरी चोट करते हैं तो दूसरी ओर, वे भारतीय संस्कृति की प्रगतिशील उजज्जवल परम्परा के प्रति अपनी दृढ आस्था भी व्यक्त करते हैं।

सांस्कृतिक चेतना के इस शिखर पुरूष को नमन.

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