poem anubhav mere jeevan ka

आँखे झूठी, बातें झूठी,
चेहरा सारा झूठा है,
बाहर अंदर सारा झूठा,
ईमां ही तेरा झूठा है ।

इस चेहरे के उपर न जाने,
और भी कितनी कालिमाई है,
कपट की लहरें तेरे भीतर,
ना जाने कितनी गहराई हैं ।

मनोहर हर वादा तोडा है तुमने,
यकीं नहीं तेरा करना,
झूठी कसमे खा – खा कर,
आदत है तेरी मुकर जाना ।

दर्द नहीं कुछ तेरे दिल में,
अश्रु ना मेरे पास बहाना,
सब दूर हो गये मेरे जीवन से,
तुम भी दूर चली जाना ।

माना कि मनोहर दूर थे तुमसे, पर इतने भी नही,
थकान से चकनाचुर थे, मगर इतने भी नहीं,
हमें अपनी महफ़िल में शामिल नहीं किया,
माना गमों से भरपूर मजबूर थे, मगर इतने भी नहीं ।

ख्वाब कोई फिर आखो में सजाने नहीं दिया,
कुछ कहा भी नहीं, कुछ सुनाने भी नहीं दिया,
अरे भूल से एक बार मैने तुम्हे रुला क्या दिया,
ज़िन्दगी भर तुमने तो मुझे मुस्कराने भी ना दिया

सहने की भी हद होती है,
दिल तो नाजुक होता है,
दुख नहीं बर्दाश्त होता तो,
नैन भी तो बरसते हैं ।

क्या बोलूँ, क्या सोचूँ,
क्या करूँ कुछ पता नही,
मनोहर हाल ए दिल बताऊँ क्या,
दिल में क्या कुछ पता नही ।

हर सपने में आग लगी है,
आशा की हर दीप बुझी है,
मरने को तो मर सकता हूँ,
पर जीना मेरी मजबूरी है ।

दुनिया हसती है मेरी हालत पर,
मैं रोता अपनी किस्मत पर,
बनाने वाला पागल होगा जो,
तरस ना खाया मेरी सूरत पर ।

माँ मिली पर ममता ना मिली,
पिता मिला प्यार ना मिला,
मनोहर जो भी मिला बेवफा मिला,
हाय, कैसा ये ऊजड़ा संसार मिला ।

खुद को मनोहर आजमाना चाहता हूँ,
ठिकाना कोई बनाना चाहता हूँ,
रास ना आयी जालिम दुनिया तो,
जहां कोई नया बनाना चाहता हूँ ।

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