kavita chot apno ki

सोने ने पुछा एक दिन लोहे से,
तू चोट लगने पर इतना चिल्लाता क्यूं है?

जबकि सुनार मुझे भी तो,
हतौडे से ही चोट मारता है ।

इतना सुनना था कि
लोहे का मुख मलीन हो गया,

मामला अत्यंत संगीन हो गया,
दुनिया भर का दर्द सारा,
उसकी आँखों में समा गया
साथ ही साथ लोहे के आगे,
एक अंधेरा सा छा गया ।

बड़े हीं प्यार से उसने,
सोने को समझाया,

मैं इसलिए देता हूँ दुहायी,
ज़ब कोई मेरा ही अपना,
भाई मुझसे है टकराता,
तो मेरा दिल भी है चिल्लाता,
दुनिया भर के सितमों को,
क्योंकि सहा जा सकता है,
पर अपनों के दिये घावों को,
कभी भरा नहीं जा सकता ।

यह कह कर लोहा,
दर्द से आहें भरने लगा,

और सोना भी नि : शब्द,
लोहे की बातों पर
अविरल विचार करने लगा ।

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