mohabat

कही पर दिल है
कही पर जान है।
जुबा से भी दोनों
हम एक जान है।
करनी कथनी में भी
हम दोनों समान है।
इसलिए दुनियां मेें यारो
हम दोनों साथ है।।

मत देखो हमें यारो
दो जिस्म की तरह।
भले ही हम दो हो
पर दिलसे एक है।
चोट किसीको लगे
दर्द दोनों को होता।
शायद इसी का नाम
सच्ची मोहब्बत होता है।।

दिल अपना है और
जान भी अपनी है।
तो प्रीत कैसे पराई
दोनों की हो सकती।
फर्क पड़ता है जब
तीर दिलको लगता है।
इसलिए तो आँखो से
ज्यादातर बातें करते है।।

हम मोहब्बत समझते है
और दिलसे निभाते है।
बिना देखे उन की
आहट सुन लेते है।
तभी तो दिनरात उनके
ख्यालों में डूबे रहते।
और अंदर ही अंदर
दिल से मुस्कराते है।।

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