samuder

नदी किनारे बैठकर
देख रहा था पानी को।
कैसे भागे जा रहा है
ऊपर नीचे टेढ़े मेड़े रास्ते पर।
न कोई उसका लक्ष्य है
और न ही उसकी योजना।
फिर भी भागे जा रहा
वो पानी आगे आगे को।।

कितने गाँवों और शहरों के
दिलको छूकर ये भाग रही।
फिर भी अपने शीतल जल से
प्यास सभी की बुझा रही।
खेतों की फसलों को भी
ये हरा भरा करती जा रही।
और बिना देखे समझे ये
आगे आगे भागे जा रही।।

इसी तरह से होता है
हम इंसानो का मन।
जो दौड़े जा रहा है
बस देखा देखी में।
सब कुछ पास होकर भी
नहीं करता मदद किसी की।
और की चाहत रखते हुये
दिन रात भागता रहता है।।
पर संतुष्ट नहीं हो पाता है
नदी की तरह अपने जीवन में।।

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *