raat

बना है मौसम कुछ ऐसा
की दिल खिल उठा है।
नजरा देखो बाग का
कैसे फूल खिल रहे है।
जिन्हें देख कर हमारी
मोहब्बत मचल उठी है।
और उनकी यादों में खोकर
तड़पने हम जो लगे है।।

बनाया था इसी बाग में
वर्षो पहले एक आशियाना।
मगर नजर न जाने किसकी
लग गई थी उस समय।
जो आबाद होने से पहले
न जाने क्यों ढह गया।
और उजड़ गया था तब
ये मोहब्बत वाला बाग।।

कतारो में बैठे रहते थे
मोहब्बत के दिवाने यहाँ।
अमन और चैन रहता था
मोहब्बत वाले बाग में।
गुलाबी फूलो की तरह
रंगिनी शाम होती थी।
दिवानो की दीवानी का
नजारा ही अलग जो था।।

अगर हो चांदनी रात तो
मेहबूब पूर्णिमा का चाँद दिखता था।
और जन्नत का प्रेमियों को
नजारा साफ दिखता था।
इसलिए राधा कृष्ण और
लैला मंजुनू आया करते थे।
और मोहब्बत की ज्योती को
यहां जलाया करते थे।।

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