खुले आसमान के नीचे जब भी मैं चाँद को निहारती हूँ ।
मन ही मन बस यही सोचती और विचारती हूँ ॥
इतनी शीतल इतनी निश्छल कोई कैसे हो सकती है ।
माँ वो है जिसके आशीष से मेरी जीवन जोत जलती है ॥
माँ तुझ बिन मेरे जीवन की कल्पना ही नही है ।
किसी भी लक्ष्य की संकल्पना भी नही है ॥
मैं जब भी तेरे आँचल में होती हूँ ।
स्वछंद आसमान की गौरैया सी महसूस करती हूँ ॥
इठलाती हूँ इतराती हूँ चहकती रहती हूँ ।
तेरे चेहरे की मुस्कान मन में आशाओं के दीप प्रज्जवलित करती है ।
माँ वो है जिसके आशीष से मेरी जीवन जोत जलती है ॥
वाणी में मधुरता मन में स्थिरता रखो ।
विचारों में स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता रखो ॥
संस्कारों का ज्ञान मर्यादाओं का मान रखो ।
ईश्वर का ध्यान , जीवन में सम्मान रखो ॥
प्रतिदिन धर्म कर्म की परिभाषाएं समझाती रहती है ।
माँ वो है जिसके आशीष से मेरी जीवन जोत जलती है ॥
मैं जो कभी लड़खड़ाऊ तो संभाल लेती है ।
मैं कुछ भी बड़बड़ाऊ सब प्यार से सुन लेती है ॥
मेरी बिटिया जैसी है क्या कोई इस दुनिया में
बड़ी शान से सबको यही कहती रहती है ।
माँ वो है जिसके आशीष से मेरी जीवन जोत जलती है ॥
माँ सब कहते हैं बेटियां पराया धन होती हैं ।
इस विचार से मैं भी डरती रहती हूँ ॥
लेकिन मैं परायी कहाँ माँ , मैं तो तुझमें ही समायी हूँ ।
तेरा ही प्रतिबिम्ब तेरी ही परछाईं हूँ ।
मैं जब भी खुश होती तो तू भी हंसती है ।
मैं जब भी रोती तो तू भी रोती है ॥
हर पल हर छण हर जगह तू मेरे साथ होती है ।
माँ वो है जिसके आशीष से मेरी जीवन जोत जलती है ॥
माँ तू ही मेरा भोर और तू ही मेरी साँझ है ।
तू ही मेरा रूप और तू ही मेरी राग है ॥
तुझसे ही मेरी शक्ति और तुझमें ही मेरी भक्ति है ।
तुझे मैं कुछ दे पाऊ इतनी योग्य कहाँ
आज तेरी बेटी तेरे चरणो में अपनी भावनाएँ समर्पित करती है ।
माँ वो है जिसके आशीष से मेरी जीवन जोत जलती है ॥
सुन्दर कविता। बहुत अच्छा
Such a lovely poem. Great job my dear sush