तू ही तपस्या है
तू ही धर्म है
त्याग है तू
तू ही हकीकत है
तू ही इबादत है
खुदा का प्यारा ख्वाब है तू
माँ शब्द ये छोटा
पर रिश्ता सबसे बड़ा होता है
जब हम कोख में पलते हैं
हमारे लिए सपने वो सजाती है
उस दर्द में तड़पती है, कराहती है
पर हमारे आने की खुशी में
सब कुछ भूल जाती है
रिश्ते तो बहुत हैं माँ
इतना तू ही क्यूँ निभाती है
कभी गोद में खिलाती है
कभी उंगली पकड़ के
चलना सिखाती है
जब लगती है ठोकर तो
वो ही याद आती है
फिर गले लगा के
मरहम वो लगाती है
रिश्ते तो बहुत हैं माँ
इतना तू ही क्यूँ निभाती है
सुबह उठ के आधी नींद में
हमारे लिए टिफिन वो बनाती है
फिर रात को हमको सुलाने को
लोरी वो सुनती है
हमारे ख्वाबों के लिए
खुद का ख्वाब वो भूल जाती है
रिश्ते तो बहुत हैं माँ
इतना तू ही क्यूँ निभाती है
हॉस्टल की जब छुट्टियां आती हैं
तो महीनों पहले से
वो योजनाएं बनाती है
जाते हैं जब दूर उस से
तो खुशी से अलविदा बोल के
अपना दर्द वो छुपाती है
पूरी हलवा और मिठाई
जाने क्या क्या पकवान बनाती है
मेरी छोटी सी अटैची में
अपना सारा प्यार भर देना चाहती है
रिश्ते तो बहुत हैं माँ
इतना तू ही क्यूँ निभाती है
फिर शादी में वो
अपने सपनों और गहनों से
हमको सजाती है
बुरी नजर से बचाती है
तो कभी काला टीका लगाती है
अपनी ज़िन्दगी का सब कुछ
वो हम पर लुटाती है
रिश्ते तो बहुत हैं माँ
इतना तू ही क्यूँ निभाती है
ज़िन्दगी की धूप में
सुकून की छाया बन जाती है
होता है जब अंधेरा तो
रोशनी वो दिखती है
ज़िन्दगी की हर मुश्किल में
उसकी दुआ ही, दवा बन जाती है
रिश्ते तो बहुत हैं माँ
इतना तू ही क्यूँ निभाती है