poem kha tum ja rahe ho

कहाँ तुम जा रहे हो
मुझे दिवाना बनाकर।
हरा क्यों दर्द तुम ने
अपनी हंसी को दिखाकर।
अब क्यों फिर से दर्द
तुम दिये जा रहे हो।
और मोहब्बत का दीप
क्यों बुझाये जा रहे हो।।

जब जाना ही था तुमको
तो क्यों जगाया प्यार दिल में।
अब न दिल बस में है
और न ये जिंदगी जो।
जहाँ देखो वहाँ तुम हो
जिंदगी की आस तुम हो।
कुछ तो रेहम कर दो
मेरे छोटे से दिल पर।।

चलती हुई सांसे भी अब
रुक रुक कर चल रही है।
तुम्हें पाने की जिद जो
इस दिल ने पाल रखी है।
कुछ तो है तुम्हारे दिल में
जो देखकर धड़क उठता है।
ये मोहब्बत है या कुछ और
या दिल का पागलपन है।
या दिल का पागलपन है।।

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