developed India 2024

मिली मुश्किलों से आज़ादी,
मगर न इस की कद्र हमें।
पड़ आदत आराम की गई,
नहीं देश की फिक्र हमें॥

देश की चिंता न हम करते,
हम भूलें ज़िम्मेदारी।
भोर करेगा कौन यहाँ अब,
निंद्रा सबको है प्यारी॥

मरने मिटने को माटी पे,
क्यों तलवार नहीं लेते।
राणा लक्ष्मी और शिवाजी,
क्यूँ अवतार नहीं लेते।।

पावन धुन तब आज़ादी की,
बच्चा बच्चा गाता था।
बन्दूक खेत में भगत सिंह,
अपने ख़ूब उगाता था॥

सूख रहा ये चमन देश का,
कौन भला अब सींचेगा।
भारत माँ के आँसू को अब,
कौन बताओ पोंछेगा॥

भ्रष्टाचार व आरक्षण की,
कौन बेड़ियाँ तोड़ेगा।
सर्वोपरि भारत अपना हो,
कौन भला अब सोचेगा॥

देश प्रेम के एक काम को,
रोज हमें बस चुनना है।
भारत विकसित हो अपना बस,
सपना मिलकर बुनना है॥

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