इंतजार बस इंतजार ,
राम का ही बस इंतजार ।
बढ़ रहा है ,बढ़ रहा है,
हर ओर रावण अत्याचार।
सह रहे हैं, सह रहे हैं,
मुंह से कुछ ना कह रहे हैं ।
घाव जो फोड़े बने हैं ,
नदियां बन-बन बह रहे हैं।
जुल्म की पराकाष्ठा तक,
सहने की इक सीमा होती।
ना विरोध में हाथ खड़ा हो,
जुल्मो-रंज में आप रोती ।
पेट भूखा, बदन सूखा ,
न मिले अब रूखा-सूखा।
गोद बच्चा रोने लगता ,
मां की ममता फिर क्यों सोती ।
पाप जो पापी का जब भी ,
हद से आगे जा बढ़ा है।
डोल उठे तब यह धरती ,
पाप ज्वारी जब-जब चढ़ा है।
देवता , अवतारियों की ,
जो कथाएं हमने सुनी है ।
मिटा पाप को ,धरती का तब ,
उन तड़प, यह राह चुनी है ।
एक ने जो उठाया बीड़ा ,
जय-जय जनता हूक उठी।
आशीष उसका भी बना रहा ,
होनी ही थी वो बात अनूठी।
ना माया , ना चमत्कार वह ,
जन-साहस का वो चमत्कार ।
इंसा सद्गुण , मिलकर उसमें ,
कर देते सब पाप संहार ।
मत रहो तुम, मत रहो तुम,
मौन साधे मत रहो तुम ।
उस विधाता नाम लेकर ,
पाप-प्रतिकार अब करो तुम ।
सहते-सहते सीमा आई ,
सहना भी अब पाप होगा ।
अन्याय हद से बढ़ गया तो ,
अब ‘ अजस्र ‘इंसाफ होगा ।
सत्य-असत्य खेल में अब ,
ना गलत , अपवाद होगा ।
‘ हत्या ‘ ना पाप की फिर,
‘ वध ‘ से ही वो बर्बाद होगा ।