न मन पढ़ने में लगता है
न दिल लिखने को कहता है।
मगर विचारो में सदा
ये उलझा सा रहता है।
करू तो क्या करू अब मैं
समझ में कुछ नहीं आ रहा।
इसलिए तो हमारा दिल
अब एकाकी सा हो रहा।।
ख्यालों में डूबकर भी
कुछ देख नहीं पा रहा।
जुबा से कुछ भी अब
ये कह नहीं पा रहा।
करू तो क्या करू अब मैं
समझ में कुछ नहीं आ रहा।
इसलिए तो अब ये मन
यहां वहां भटक रहा।।
माना की मन और दिल पर
किसका जोर नहीं चलता।
समस्या कितनी भी बड़ी हो
सुलझाना तो उसे पड़ता।
जरूरी है नहीं ये की
सभी प्रश्न हल हो जाये।
हमें कोशिश हमेशा ही
करते रहना चाहिए।।
बनी है हर मर्ज की दवा
विधाता ने दुनियां में।
तुम्हें ही खोज कर उसे
सामने लाना पड़ेगा।
और अपनी बुध्दि विवेक का
परिचय देना पड़ेगा।
जिससे मानव होने का
तुझे एहसास हो जायेगा।।
हमारे इस संसार में।