‘भरी सभा सी’ दुनिया देखे,
‘वस्त्रविहीन-अबलाओं’ को।
जाति-समाज के नाम पे किसने,
बांट दिया भावनाओं को?
बहन-बेटी की लूटती इज्जत,
सभ्य समाज पर कलंक सी।
कुछ दानव से क्यों मनुज ऐंठते,
बस, मानवता का अंत ही?
सजा मौत भी, कमतर उनको,
मान देश का, घटाया है।
शर्मसार कर दिया है सबको,
शीश जन-जन का झुकाया है।
हो भले मणिपुर, या रजधानी,
भले देश का कोई हो छोर।
नारी जब तक रक्षित न होगी,
कैसे बढ़े, विकसित की ओर।
नारी-मन है अति ही कोमल,
मुरझा के खिल नहीं पाएगा।
‘निर्भया’ नाम दे देने से ही,
भय-मन, कैसे मिट पाएगा?
अब तो जागो, ओ! पहरेदारों,
आधी-आबादी करे पुकार।
नारी दुर्गा बन, खड्ग उठा ले,
क्या इसका हो रहा, इंतजार?
भले बदल दो उस इतिहास को,
नारी लूट का रही सामान।
सब अपनाओ बस उस मन्त्र को,
“पूज्यते नारी…” ही सबका गान।
देश भविष्य तब ही हो विकसित,
सशक्त-नारी के हो प्रयास।
हाथ से हाथ सब ‘अजस्र’ मिलाओ,
‘नारी-रक्षित’ हो, अब हर हालात।