श्यामू पंडितजी का शूरपुरा गॉंव में सिक्का चलता है। गांव में ही नहीं; पूरे मौजे में कथा वाचते हैं, विवाह पढ़ते हैं और सारे पंडिताई के काम – काज करने के साथ – साथ खेती भी करते हैं। पंडित जी की साठ – सत्तर बीघा जमीन है। सारी भूमि उपजाऊ है। हर खेत पर कुँए और नहर की व्यवस्था है। सारा काम मजदूर ही करते हैं। वे सिर्फ खेती की देखरेख करने जाते हैं और मजदूरों को काम बताकर अपनी पंडिताई करने चले जाते हैं।
रेखा पंडिताइन पूजा – पाठ और घर – गृहस्थी के कामकाज में ही सारा दिन निकाल देती हैं। इनके एक बेटी है दिव्या तिवारी और एक बेटा भी है सुनील तिवारी। दिव्या जितनी खूबसूरत, सुशील और संस्कारी है। सुनील उतना ही कुरूप, बदचलन और आवारा है।
दिव्या हाईस्कूल में शहर वीरगंज के शारदा बालिका शिक्षा मंदिर में पढ़ती है। पढ़ने में तेज होने के साथ – साथ नृत्य भी बेमिसाल करती है। समय से स्कूल जाती है और समय से ही लौटती है। लेकिन उसका भाई सुनील वीरगंज के ही बल्देव माते इंटर कॉलेज में इंटरमीडिएट में पढ़ता है। वो कभी – कभार ही क्लास लेता है। दिनभर दोस्तों के साथ बाईक पर सवार होकर इधर – उधर घूमता रहता है। वो माँस – मच्छी भी खाता है और शराब भी पीता है। ज्यादा पढ़ता – लिखता कुछ नहीं। निराट ढोर है वो।
सुनील कॉलेज में मास्टरों से झगड़ा करता है। लेकिन क्लास की लड़कियों की बहुत इज्जत करता है। गांव में भी दोस्तों के साथ घूमता – फिरता ही रहता है। मम्मी – पापा बहुत समझाते हैं लेकिन वो बिल्कुल मानता ही नहीं।
वो दूसरे मुहल्ले के रमली चमार की बेटी आयुषी चमार से प्रेम कर बैठता है। रमली गांव में मोची का काम करता है। आयुषी अभी गांव के ही सरकारी हाईस्कूल में कक्षा नौ में पढ़ रही है। पढ़ाई के साथ वो सिलाई का काम भी करती है क्योंकि गरीब घर में इस महँगाई के जमाने में खर्चा चलाना मुश्किल होता है। धीरे – धीरे वो भी सुनील से बेइन्तहाँ प्यार करने लगती है। होली के दिन सुनील आयुषी को गांव से भगाकर ले जाता है। सारे गांव में इनके भागने की खबर सेकेण्डों में ही फैल जाती है। जिससे पंडित जी की बहुत बदनामी होती है।
अगले दिन रमली चमार पंडित से झगड़ने पहुँच जाता है। वो धमकी देकर कहता है –
“अरे पंडित ! तेरे बेटे ने मेरी बेटी भगाकर अच्छा नहीं किया, इसका इल्जाम बड़ा भयंकर होगा। समझे!”
“पंडित जी रमली के आगे हाथ जोड़कर माफी माँगते हैं।”
“रमली पंडित जी पर और क्रोधित हो जाता है।”
पंद्रह दिन बाद शाम को सुनील और आयुषी वापिस गांव लौट आते है। दोनों अपने – अपने घर चले जाते हैं। सुनील को घरवालों द्वारा बहुत ताड़ा जाता है, धिक्कारा जाता है। आयुषी के साथ भी यही सलूक होता है। जो सुनील के साथ हुआ। अगली सुबह पंचायत बैठायी जाती है। पंचायत में गोविंद माते , पंकू मुखिया , निहाल बाबू , कृष्णा महाराज जैसे सात – आठ पंच समेत पंडित जी और रमली के घरवाले बैठते हैं।
पंचायत में रमली चमार कहता है –
“हम पुलिस खों रपोर्ट लिखाबे जा रए। यी पंडित खों सजा जरूर दिलाहों।”
रमली को अपनी इस बात पर अड़े रहने पर पंचों द्वारा समझाया जाता है। बहुत समझाने के बाद वो तीन लाख रुपए में राजीनामा करने को सहमत हो जाता है। रमली अपनी बेटी के यौन – शोषण की कीमत तीन लाख सुनील पंडित के पिता श्यामू से भरी पंचायत में ले लेता है और गुनाह माफ कर देता है। पंचायत में सुनील , श्यामू पण्डित जी और उनकी धर्मपत्नी आयुषी, रमली चमार और उसकी धर्मपत्नी के पैर छूते हैं और माफी मांगते हैं।
पाँच महीने बाद आयुषी गर्भवती दिखाई देने लगती है। रमली चमार उसके विवाह के लिए वर का घर ढूंढने लगता है। वर ढूंढते – ढूंढते ही मकर संक्रांति को आयुषी से एक सुंदर कन्या का जन्म होता है। कन्या के जन्म के बाद आयुषी से कोई भी विवाह करने को राजी नहीं होता है। उसे जिन्दगी भर अविवाहित रहना पड़ता है।
वह अपने पिता रमली से गुस्साते हुए कहती है – “अरे मोए बाप! तोय तनक भी सरम नईं आई, तोए बड़ी रूपज्जन की भूंक हती। धन – दौलत के लानें तैनें अपनी फूल सी बिटिया खों बेंच दओ। ऐसे बाप पे थू – थू….।”
“हमाओ सुनील मौसें शादी करबें खों तईयार हतो। लेकिन तैनें और यी मताई नें धन – दौलत की लालच में आकें जब मोए बहला – फुसलाकें सुनील सें शादी करबे के लानें मनें करबाई, मौसें सुनील पे झूठे इल्जाम लगबाए।”
“तुमऔरन जैसे बाप – मताई पे धिक्कार है। जिननें अपने स्वार्थ के लानें अपनी बिटिया की इज्जत खों नीलाम कर दओ। ऐसे बाप – मताई पे थू – थू…।”
एक साल बाद सुनील और आयुषी जैसे और किस्से सुनने में आते है। धीरपुर ग्राम पंचायत, वीरगंज न्यायपंचायत की दो सगी बहनें स्नेहा और मालती तेली वीरगंज में किराए पर कमरा लेकर हाईस्कूल कर रही थीं। कमरे पर निमेंद्र बसोर सप्ताह में तीन – चार बार आता जाता रहता था। कभी – कभार वहीं रात भी बिताता था।
एक दिन स्नेहा से कमरे वाले अंकल ने पूंछा – ” कौन है ये लड़का ? जो कमरे पर बार – बार आता है।”
“अंकल ! ये मेरे जीजाजी हैं।”
” कोई बात नहीं बेटा ! मैं तो ऐसे ही पूछ रहा था।”
एक महीने बाद अचानक स्नेहा के पिताश्री खेमू सेठ कमरे पर पहुंच जाते हैं। निमेन्द्र पलंग पर लेटा हुआ है और दोनों बेटियां खाना पका रही हैं। अचानक पिताश्री को देखकर दोनों बहनें बहुत डर जाती हैं और शर्मसार हो जाती हैं।
खेमू सेठ मालती से पूछता है –
” ये लड़का, जो पलंग पर लेटा है। कौन है? कहाँ का है?”
” पापा ये मेरा दोस्त है निमेंद्र। हल्कागढ़ के करोड़े अंकल का बेटा।”
” कौन करोडे अंकल ?”
” वही जो टोकरी, पिरा और हाथ के पंखा बनाते हैं और बेचते हैं ।”
” अच्छा! कोई बात नहीं।”
इतना सुनकर सेठ कमरे के मालिक से अपनी बेटियों और उस लड़के के बारे में पूछताछ करते हुए कहते हैं –
” भाई ! सच – सच बताना कि मेरी बेटियों और उस लड़के के बारे में आपको क्या – क्या पता है। बताओ, प्लीज…!”
” अरे बड़े भाई ! आपकी बेटियों और उस लड़के के बारे में ज्यादा कुछ तो पता नहीं। जितना पता है, वो सब बताता हूँ। एक दिन की बात है कि जब मैंने स्नेहा से उस लड़के के बारे में पूंछा था तब उसने जवाब में अपना जीजाजी बताया था। मैंने समझा सच में जीजाजी ही होगा तभी बार – बार आता है और बाकी का भगवान जाने….।”
” बड़े भाई! आप ही बताइए, क्या वो लड़का आपका दामाद है?”
” नहीं भाई ! वो मेरे गांव का लड़का है। आज पहली बार ही मैंने इस कमरे पर देखा है। पहले ज्यादा कभी ध्यान नहीं दिया था। उसके बाप को जरूर जानता हूँ।”
” अरे बड़े भाई! ये तो बहुत गलत हो रहा है आपके और आपकी बेटियों के साथ। इसमें गलती आपकी बेटियों की ही हैं…।”
इतना सुनकर खेमू सेठ आग बबूला हो जाते हैं और बेटियों के कमरे में जाकर गुस्साते हुए कहते हैं – ” कहाँ गया वो लड़का? देखता हूँ उसे कैसा तुम्हारा दोस्त है और कैसा जीजा?”
” फटाफट सामान पैक करो और घर चलो अभीहाल इसी वक्त। हो गई हाईस्कूल तुम लोंगों की, यहाँ पढ़ने आयी थी या इश्कबाजी करने। पहले घर चलो फिर बताते हैं…।”
खेमू सेठ दोनों बेटियों को लेकर जैसे ही घर पहुंचते हैं तभी दरवाजे पर पत्नी सुनयना मिल जाती हैं।
“वो पूछती है – क्यों ले आये इन्हें?”
” चलो अंदर फिर बताते हैं। ये हमरी नालायक बेटियाँ, दोनों की दोनों उस बसोर के लड़के से वहाँ इश्क लड़ा रही थीं। हम लोंगों की नाक कटवा रही थीं। पढ़ाई का सिर्फ नाम था। ये सब तो मुझे तब समझ में आया जब मैंने कमरे के मालिक से इनके बारे में पूंछताछ की…।”
” हे भगवान ! ऐसी है हमरी बेटियां…।”
अब दोनों बहिनें एक कोने में सामान पटककर पलंग पर बैठकर आंसू बहा रही होती हैं और फिर माँ – बाप की डांट – फटकार सुनकर सो जाती हैं।
दो माह बाद स्नेहा की शादी रितेश से और मालती की शादी मोहित से कर दी जाती है। दोनों के ससुराल वालों का अच्छा खासा व्यवसाय है। एक की फर्नीचर की दुकानें हैं और तो दूसरे की सीमेंट की एजेंसी…।
तथाकथित अपमानित सामाजिक व्यक्ति खेमू सेठ अपनी बेटियों की शादी करने के बाद निमेंद्र बसोर का मर्डर करवा देता है जिसकी किसी को भनक तक नहीं लगती। ये है आज के गरीबों और अमीरों, देहाती और शहरी समाज का हाल…।