फिल्म ‘नमक हलाल’ में स्मिता पाटिल और अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गया बारिश-गीत ‘आज रपट जाए तो’ आज भी दर्शकों के जेहन में ताजा है । समांतर फिल्म की संवेदनशील नायिका को इस तरह से बारिश में भीगते हुए सुपरस्टार के साथ गाते देख सिनेमा हॉल के आगे की पंक्ति में बैठनेवालों ने जमकर पैसे लुटाए थे । लेकिन इस गाने के पीछे की एक दिलचस्प कहानी दर्शकों को पता नहीं है । मशहूर निर्देशक प्रकाश मेहरा ने जब स्मिता पाटिल को इस फिल्म में साइन किया था तो वो बेहद खुश थीं । उनका उत्साह चरम पर था, फिल्म के दौरान वो सेट पर हमेशा की तरह बेहद खुश रहती थीं और साथी कलाकारों के साथ चुहलबाजियां भी करती थी । जब स्मिता पाटिल पर ये गाना फिल्माया गया था तो उसके बाद वो देर तक रोती रहीं थी । उन्हें मालूम था कि वो प्रकाश मेहरा जैसे बड़े निर्देशक की बड़े बजट की मल्टीस्टारर में काम कर रही थीं लेकिन तब उन्होंने ये नहीं सोचा था कि उसकी उन्हें ये कीमत चुकानी पड़ेगी । ये वही स्मिता पाटिल थी जो अपने बिंदास अंदाज के लिए फिल्म जगत में जानी जाती थी । ये वही स्मिता पाटिल थी जिन्होंने मंथन, भूमिका, अर्थ, मिर्च मसाला जैसी फिल्मों में यादगार भूमिका निभाई थी । ये वही स्मिता पाटिल थी जिन्होंने दूसरी तरफ इंसानियत के दुश्मन , आनंद और आनंद, बदले की आग , अंगारे, कयामत जैसी दोयम दर्जे की फिल्मों में भी काम किया था । इससे आपको अंदाजा हो सकता है कि स्मिता पाटिल के व्यक्तित्व के कितने पहलू थे । उनके अभिनय का रेंज कितना बड़ा था । इस तरह के दिलचस्प किस्सों को पत्रकार और फिल्म समीक्षक मैथिली राव ने अपनी किताब ‘स्मिता पाटिल, अ ब्रीफ इनकैनडेंस्ट’ ने समेटा है । स्मिता पाटिल पर लिखी किताब से पाठकों की ये अपेक्षा रहती है कि वो जाने कि वो कौन सी परिस्थितियां थी जिनमें स्मिता पाटिल ने राज बब्बर से शादी की और फिर दोनों साथ नहीं रह सके ।
स्मिता पाटिल की मां विद्यावति की शादी की भी दलचस्प कहानी है। विद्यावति ने सिरपुर में शिवाजीराव का भाषण सुना । उसके बाद विद्या ने शिवाजीराव को एक पत्र लिखा और उनके साथ काम करने की इच्छा जताई । इसके बाद घटनाओं ने नाटकीय मोड़ लिया और विद्यावती और शिवाजीराव की शादी हो गई । शादी के बाद जब शिवाजीराव और विद्या मुंबई आते हैं तो मजदूर नेता अशोक मेहता की कृपा से उनको उस हॉल में रहने की जगह मिलती है जहां ढेर सारे मजदूर रात गुजारते थे । उस कम्यून में विद्या अकेली महिला होती थीं । मुफलिसी के उसी दौर में वो दोनों पुणे लौटते हैं फिर मुंबई वापस आते हैं जहां विद्या अपने परिवार को चलाने के लिए नर्स की नौकरी करती हैं । तब तक वो एक बच्चे को खोने का सदमा झेल चुकी होती हैं और एक बच्ची को जन्म दे चुकी होती हैं । नर्सिंग के दौर में ही स्मिता पाटिल का जन्म होता है और जन्म के वक्त हो हंसती हुई पैदा होती है इस वजह से उसका नाम स्मिता रख दिया जाता है । स्मिता अपने मां बाप की मंझली संतान थी लेकिन अपनी बहनों से बिल्कुल अलग और मस्त मौला थी । स्मिता को याद करते हुए उसके दोस्त कहा करते हैं कि उसकी दोनों बहने प्रैक्टिकल थीं जबकि स्मिता इमोशनल थी । स्मिता के रंग को देखकर उसके दोस्त उसको काली कहा करते थे जिसके जवाब में स्मिता ए हलकट कहकर निकल जाती थी । बचपन से स्मिता राष्ट्र सेवा दल के साथ खूब सक्रिय थी । ये संगठन गांधी जी के सर्व धर्म समभाव के आधार पर गठित की गई थी । दरअसल स्मिता के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे और आजादी के आंदोलन के दौरान जेल भी गए थे । स्मिता की मां कहा करती थी कि समाज सेवा उनके परिवार का स्थायी रोग है जिसका कोई इलाज नहीं है । ये ‘रोग’ स्मिता में उसके करियर के दौरान भी देखा गया था । जब वो अपने अभिनय के करियर पर टॉप पर थी तब भी वो समाज सेवा के लिए वक्त निकालती थी । फिल्मी दुनिया के अभिनेता और अभिनेत्री अपने करियर के ढलान के दौर में समाज सेवा से जुड़ते रहे हैं लेकिन स्मिता पाटिल ने अपने स्टारडम के दौरान भी उसको नहीं छोडा ।
पुणे की फिजां में ही कुछ बात है कि लोग वहां साहित्य, संस्कृति और कला को लेकर खासे उत्साहित रहते हैं । उस फिजां का असर स्मिता पाटिल पर भी पड़ा और उसने अभिनय की ओर कदम बढ़ा दिए । उस दौर में कम ही लोगों को ये मालूम था कि स्मिता पाटिल पुणे की मशहूर संस्था फिल्म एंड टेलीविजन संस्थान की छात्रा नहीं है क्योंकि उसका ज्यादातर वक्त वहां पढ़नेवाले उनके दोस्तों के साथ उसके ही कैंपस के इर्द गिर्द बीतता था । मोटर साइकिल से लेकर जोंगा जीप को चलाते हुए स्मिता पाटिल ने टॉम बाय की छवि बना ली थी । अपने दोस्तों के साथ मराठी गाली गलौच की भाषा में बात करना उनका प्रिय शगल था । जब उसके पिता मुंबई आ गए तब भी उसका दिल पुणे में ही लगा हुआ था । वो मुंबई नहीं आना चाहती थी लेकिन परिवार के दबाव में वो मुंबई आ गई । यहां उसने एलफिस्टन छोड़कर सेंट जेवियर में पढाई की । बावजूद इसके उसकी अंग्रेजी अच्छी नहीं थी, स्मिता पाटिल ने जेवियर के माहौल में खुद को ढाला । यहां उसके साथ एक बेहद दिलचस्प वाकया हुआ और वो दूरदर्शन में न्यूज रीडर बन गई । स्मिता की बहन अनीता के कुछ दोस्त पुणे से आए हुए थे जिनमें पुणे दूरदर्शन की मशहूर न्यूज रीडर ज्योत्सना किरपेकर भी थी । उसके एक साथी दीपक किरपेकर को फोटोग्राफी का शौक था और वो स्मिता पाटिल के ढेर सारे फोटो खींचा करते थे, ये कहते हुए कि घर की मॉडल है जितनी मर्जी खींचते जाओ । स्मिता भी उनके सामने बिंदास अंदाज में फोटो शूट करवाती थी । एक दिन अनीता के दोस्तों ने तय किया कि स्मिता की तस्वीरों को ज्योत्सना किरपेकर को दिखाया जाए । एक दिन की बात है क्लास खत्म होने के बाद सबने तय किया कि मुंबई दूरदर्शन के वर्ली के दफ्तर में चला जाए । सब लोग वहां पहुंचे तो दूरदर्शन के दफ्तर के पास एक समतल जगह दिखाई दी तो वहां रुक गए और स्मिता के कुछ फोटोग्राफ्स फैला दिया । संयोग की बात थी कि उसी वक्त मुंबई दूरदर्शन के निदेशक पी वी कृष्णमूर्ति वहां से गुजर रहे थे । वो इनमें से कुछ को जानते थे क्योंकि ये लोग ज्योत्सना से मिलने अकसर दूरदर्शन के दफ्तर में जाया करते थे । कृष्णमूर्ति ने उन सबको इकट्ठे देखा तो रुक कर हाल चाल पूछने लगे । इसी दौरान उनकी नजर स्मिता पाटिल की तस्वीरों पर चली गई । उन्होंने पूछा कि ये लड़की कौन है और वो इससे मिलना चाहते हैं । अब सबके सामने संकट था कि स्मिता को इस बारे में कौन बताए और कौन उसको ऑडीशन के लिए राजी करे । फिर तय हुआ कि अनीता और ज्योत्सना मिलकर स्मिता को ऑडीशन के लिए राजी करेंगे । काफी ना नुकूर स्मिता को दोनों दूरदर्शन के दफ्तर लेकर पहुंची जहां ऑडिशन के वक्त उसने बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आम सोनार बांग्ला’ गाया । स्मिता का चुनाव हो गया और वो मराठी न्यूजरीडर बन गई । वो दौर ब्लैक एंड व्हाइट टीवी का था । सांवली स्मिता, गहराई से आती उसी आवाज, उसकी भौहें और बड़ी सी बिंदी ने स्मिता पाटिल को खुद ही खबर बना दिया। जो लोग मराठी नहीं भी जानते थे वो भी स्मिता पाटिल को खबर पढ़ने के लिए देखने के लिए टेलीविजन खोलकर बैठने लगे थे । स्मिता पाटिल खबर पढ़ते वक्त हैंडलूम की पार वाली साड़ी पहनती थी लेकिन कम लोगों को ही पता है कि वो जींस पैंट पर साड़ी लपेट कर खबरें पढ़ा करती थी । दूरदर्शन के उस दौर में ही श्याम बेनेगल की नजर स्मिता पाटिल पर पड़ी और वहीं से उन्होंने तय किया कि स्मिता के साथ वो फिल्म करेंगे । उस दौर में मनोज कुमार और देवानंद भी स्मिता पाटिल को अपनी फिल्म में लेना चाहते थे । यह संयोग ही है कि स्मिता मनोज कुमार की फिल्म में काम नहीं कर सकी लेकिन जब देवानंद ने अपने बेटे सुनील आनंद को लॉंच किया तो उन्होंने उसके साथ स्मिता पाटिल को ही आनंद और आनंद फिल्म में साइन किया था ।
जब हम स्मिता पाटिल की बात करते हैं तो शबाना आजमी के बगैर वो बात अधूरी रहती है । स्मिता पाटिल और शबाना आजमी में जबरदस्त स्पर्धा थी और लोग कहते हैं कि साथ काम करने के बावजूद उनमें बातचीत नहीं के बराबर होती थी । हलांकि किताब के लांच के वक्त शबाना ने स्मिता पाटिल के बारे में बेहद स्नेहिल बातें की और यहां तक कह डाला कि उनका नाम शबाना पाटिल होना चाहिए था और स्मिता का नाम स्मिता आजमी होना चाहिए था । हलांकि शबाना ने माना था कि दोनों के बीच स्पर्धा थी लेकिन वो उसके लिए बहुत हद तक मीडिया को जिम्मेदार मानती हैं । शबाना ने ये भी स्वीकार किया कि उस दौर में दोनों के बीच सुलह की कई कोशिशें हुईें लेकिन वो परवान नहीं चढ़ सकीं और दोनों के बीच दोस्ती नहीं हो सकी ।
इस बात की क्या वजह थी कि मंथन, निशान, मिर्च मसाला जैसी फिल्मों में काम करनेवाली कलाकार ने बाद के दिनों में कई व्यावसायिक फिल्मों में काम किया था । इस बारे में श्याम बेनेगल कहते हैं कि स्मिता को भी पैसे कमाकर बेहतर जिंदगी जीने का हक था । वो कहते हैं कि सिर्फ स्मिता ने ही नहीं बल्कि शबाना ने भी कमर्सियल फिल्मों में काम किया। इसके अलावा नसीर से लेकर ओमपुरी तक ने भी समांतर सिनेमा से इतर फिल्मों में काम किया । श्याम बेनेगल कहते हैं कि इन वजहों के अलावा स्मिता के दिल में ये बात भी थी कि वो साबित करना चाहती थी कि वो हर तरह की फिल्म कर सकती है और सफल हो सकती है । कुछ लोगों का कहना है कि राज बब्बर से शादी के बाद पैकेज डील के तहत उसको कई कमर्शियल फिल्मों में काम करना पड़ा था जैसे आज की आवाज और अंगारे । मोहन अगासे कहते हैं कि स्मिता पाटिल जीनियस नहीं थी लेकिन बेहद संवेदनशील थी । कुछ इसी तरह की बात ओमपुरी भी करते हैं जब वो एक वाकया बताते हैं । ओमपुरी जब मुंबई में रहते थे तो उनके पास अपना घर नहीं था। जब ये बात स्मिता पाटिल को पता चली तो उसने अपनी मां से कहा कि वो वसंतदादा को बोलकर ओम को एक घर दिलवा दे । उसके बाद वो ओमपुरी को लेकर वसंतदादा के पास भी गई । लेकिन ओमपुरी को घर इस वजह से नहीं मिल सका कि उनको महाराष्ट्र में रहते हुए सिर्फ दस साल हुए थे जबकि उस वक्त ये सीमा पंद्रह साल थी । स्मिता पाटिल एक ऐसी कलाकार थी जिन्हें इक्कीस साल की उम्र में नेशनल अवॉर्ड मिल गया था और इकतीस साल की उम्र में उनका निधन हो गया ।
साभार- हाहाकार

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