वे दोनों आश्वस्त हैं
उनके प्रेम का जुनून उनके साथ जुड़ा है
ऐसी निश्चिंतता बहुत सुंदर होती है
लेकिन
अनिश्चितता की सुंदरता भी कम नहीं होती है
जिसे आप प्रेमिका कह सकते हैं ..

चूंकि
वे पहले कभी नहीं मिले
इसलिए वे निश्चित हैं
उनके बीच सिर्फ प्रेम है

नहीं !
अभी उसकी स्मृतियों में कुछ भी नहीं है
सुनकर चकित मत हो
पहले-पहले प्रेम की संभावनाएं
अभी उसके साथ कदम से कदम मिला रही हैं
अभी थोड़ा और प्रतीक्षा करो

बस एक बार, हाँ एक बार
उनके प्रेम को
कमरे, सीढ़ियों, दरवाजे, सड़कों
मॉल, रेस्तरां, महल, मकान से गुजर जाने दो
जरा ऑफिस के फाइलों में उलझ जाने दो
बच्चों के स्कूल की फीस से लेकर
नए कंगन के डिमांड तक को समझ जाने दो
फिर जांच लेना उसका प्रेम

किसी मॉल में अंदर जाने के लिए
घूमने वाले दरवाजे की तरह
निर्विकार हो जाता है
दोनों का प्रेम
कुछ बरस गुजरते ही

अनजाने में कर देते हैं दोनों
अपने प्रेम का फिक्स डिपॉजिट
और बन जाते हैं समाज में
एक सम्मानित “पति-पत्नी”

फिक्स डिपॉजिट की तरह ही
हर साल “करवाचौथ” पर
इस प्रेम को रिन्यू करवाना पड़ता है
तभी तो ये चलेगा वर्षों

शायद वे एक-दूसरे से
लाख बार गुज़र चुके हैं
मैं उनसे पूछना चाहता हूँ
क्या उन्हें याद नहीं है
पहला आमना-सामना
घूमने वाले दरवाजे में टकराना..!
नहीं याद आ रहा है न
ट्रैफिक के शोर में
कुछ साफ-साफ सुनाई नहीं पड़ रहा है न

शायद “प्रेम” भीड़ में बदल गया?
शायद “प्रेम” बाजार में बदल गया
शायद “प्रेम” रोजगार में बदल गया
शायद “प्रेम” आकार में बदल गया
शायद “प्रेम” आभाव में बदल गया या
शायद “प्रेम” प्रभाव में बदल गया

तभी कॉफ़ी तैयार है
की जानी पहचानी आवाज कानों में घुल गई
मेरी आँख खुल गई

शाम धुंधलके में छुप रही थी
तेजी से गुजरते वक्त के आईने से
मैं धूल पोंछ रहा था
और सोंच रहा था ….
चांद के निकलते ही पत्नी
प्रेम को फिर छलनी से छानेगी
तभी प्रेम सच्चा है वह मानेगी

छलनी के छिद्रों को वह नहीं देख पाती है
सातों जन्म पाने की फिर से कसम उठाती है

आज कौन
आश्वस्त है कहना मुश्किल
उनका फिक्स डिपॉजिट काम आ रहा है
शाम होने को है फिर चांद आ रहा है…

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