उपकार करो निश्छल हो जग में फिर भी डरना पड़ता है
इंसानी बस्ती में इंसानों को,इंसानों से डरना पड़ता है
दूध पिलाओ,चमर हिलाओ, सर्वस्व थमा दो तुम उसको
फिर भी गर काटे दौड़े तो, फन एड़ी से रगड़ना पड़ता है
होता प्रतीत है बहुत शान्त और निर्मल ही नीला अम्बर
पर आता है वहाँ महाप्रलय जहाँ क्रोधित होता वो अम्बर
टूटा था जब शिव का धनुष, था आयोजित सीय स्वयंवर
तब पहुँचे थे जब परशुराम फिर जन जन कांपा था थर थर
हम गाँधीवाद समर्थक हैं पर पूजा,नेता-राणा की करते हैं
हम कन्द मूल खा लेते हैं, पर आजादी से  रहते हैं
गाँधीवाद समझ कर तुमने कोशिश की जो थप्पड़ एक
दिल आँत निकल आयेगा बाहर, मारा जो मैंने भाला फेंक।।

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