मैं दिल की जद्दोजहद,बातों में उड़ा देता हूँ,
छुपाने को ज़र्द चेहरा,मुखौटा लगा लेता हूँ।
इधर दिखा के तमाशा भी मिलेगा क्या यारो,
मैं छलकते अश्कों को,पलकों में छुपा लेता हूँ।
यारों न चाहता हैं कोई अब बनना हमसफ़र,
मैं तो खुद-ब-खुद खुद को,किनारे लगा लेता हूँ।
बदल चुके हैं अब तो नाते रिश्तों के भी मायने,
अब मतलब के लिए गैरों को,यार बना लेता हूँ
मोहब्बत के मसले में बड़ा बदनसीब हूँ यारों,
मैं तो उल्फ़त के जज़्बों को,अंदर दबा लेता हूँ।
‘मिश्र’आ गयी है ज़िंदगी ख़ारों की गिरफ़्त में,
अब गुलों की खुशबुओं को,ख़्वाब बना लेता हूँ।